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________________ સ્તવન આધકાર. RAMERAGree RREGeet एक समय त्यां वार, हांहारे लोकंते रहे गर ॥ हांहारे ६ अव्याबाध हितकार, हांहारे ज्ञान शीतळ सार ॥॥१ नेमिः ॥ ११॥ ॥ कळश.॥ GornGARGrnsranARG & पाया पायारे नेमि राजुल सिद्ध पद पाया ॥ वेद । विषय राग पुर कराया, वीतराग नावमां आया ॥ अनुन्नव ज्ञान स्वरूपमां लावी, चिदानंद ध्यान ध्यायारे ॥ नेमि राजुल सिद्ध पद पाया ॥ पाया पायारे, मेंतो गायारे, नेमि 6 राजुल सिद्ध पद पाया ॥ ए आंकणी ॥ १॥ गुण पर्याय एकत्व नावे, अन्नेद ज्ञानमां आया ॥ उपयोग स्थिर श्रकृत्यरमणमां, केवळनाण दर्शण पायारे ॥ नेमिः ॥२॥ ए नावे अरिहंत पद लाध्यु, त्यांथी सिद्ध पद साध्यु ॥ संसार बीज निकंदन कीg, तीहां सुख अनंतु वाध्युरे ॥ नेमि० ॥३॥ नेमि पेहेलां राजुल सिद्ध थावे, स्वामि आज्ञा शीश चढावे ॥ पति अनिप्राये पतिपणुं पामी, सिद्ध वधुकंत कहीने बोलावे रे ॥ नेमिः ॥ ४॥ सिद्ध निरंजन 9 ज्योति स्वरूपी, अचळ अक्षय पद रामी ॥ अकळ अलख १ तुंही रूपी अरूपी, ज्ञान शीतळ अंतर जामीरे ॥ नेमिः ॥५॥ संपूर्ण सर्व गाथा ३७ ॥ स्तवन ॥ १४ ।। मुं॥ श्री पार्श्वनाथजी । ॥वीर कुंवरनी वातमी कोने कहीए ॥ ए देशी ॥ १) पार्श्व जीणंदने ध्याश्य, नवी नावे, नाव उपयोग है तीहां कहावे॥ शीव साधन ए विण नावे, सत्य समजो एम॥ PRASAN G rewasi Pronormore wordGGAGAR GARG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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