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________________ Gorwara GraharGroGRang PRPRASARAGARLSORRISMRAGreasores १ पार्श्व जिणंदने ध्याश्ये नविनावे॥ए आंकणी ॥ गाथा॥१॥ पारस स्पर्शे लोह कंचन थावे ॥ फरी लोह पणुं नहीं E पावे॥ समज्यां दृष्टांत विवेकावे,आवे ज्ञानने ध्यान॥पा.॥ है @ शुद्ध स्वन्नाव पारस मणी ते फरसे, तीहां परसंगे उपयोग ६ S, टळशे ॥ निज उपयोग शुद्धता करशे, एमां नहीं संदेह है ॥ पार्श्व० ॥३॥ उपयोग शुद्ध स्वरूपनो नाव जाणो, & गुणपर्याय मांही आणो॥ जिन्न व्यक्ति अनंती टाणो, शी-है वरूप रसाल ॥ पार्श्व०॥४॥ आतम ज्ञाननी मुख्यता श्हां साधे, शक्ति व्यक्ति करी शीव साधे ॥ ज्ञान शीतळ सिद्ध आराधे, पामे पद निरवाण ॥ पार्श्व० ॥ ५ ॥ स्तवन ॥ १५ ॥ मुं ॥ श्री वीरस्वामीनू ॥ मारं मन लोनापुंजी, मारुंदील लोनाणुंजी देखी का यक ऋद्धि वीरनी माझं मनसोनाणुंजी ॥ दायक ऋद्धि सदगुरू उळखावे, तेहनो राग करावे॥ रागनो प्रेयों नावे वीर्य फोरवे, त्यां ग्रंथि नेदि समकित पावे ॥ माझं मन लोनाएंजी॥ए आंकणी ॥१॥ समकितादि गणे शीव पंथे जागे, शुद्धात्म अनुन्नव घटमां ॥ रुपक श्रेणिए लहे वीर्य अनंतुं, त्यां हणे रागद्वेष मोह ऊटमां ॥ मारुं ॥२॥ ए क्षीण मोह गणे आवे वीतराग नावमां शुक्ल बीजो पायो ध्याता ॥ ज्ञानावरणादि त्रण कर्म त्यां हणीने, लहे केवळ , g ए लोकालोक झाता ॥ मारु० ॥ ३॥ दायक ऋद्धि अनंती १ 5 ए देखे, प्रत्यक्ष प्रमाणे घटतरमां॥ ते ऋद्धिनुं वर्णनन थावे , कह्या नव नेद चोथा कर्म ग्रंथमां ॥ मारुं० ॥४॥ GorakoreGroGGreGRAGrGrenore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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