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________________ FRRAGARAGRAPARATORAGExam श्री धर्म प्रवर्तन सार. बोधिबीजनी प्राप्ति तद्रुप समकित ते अमुल्य रत्ननुं दान देवं ते संयतिपदे उचित डे एम बती शक्तिए कृपणता न १ 9) करे तेमने आत्मानंदी कहीए. (५) हवे त्रीजुं लक्षण दीर्घ दृष्टिवंत एटले घणीज मोटी विस्तार बुद्धि के जेमनी एवा परम सारांश जैन श्राज्ञा ग्राहक तद् हेतु एटले जे एक पोतीको आत्मा तेहीज साचो ज्ञानादि अनंता गुण अने अव्यावाधादि अनंता पर्याय मय सादात् परमात्मा सरखो शक्ति नावे अनादि सिद्ध ले. तेने व्यक्ति नावे प्रगट करवा अर्थे मोद नीपजाववा माटे जे सहज समाधिए ध्यान करवु रमण करतुं 6 तेने तदूहेतु अनुष्टान कहीए. हवे अमृत ते मन वचन 3 अने काया ए त्रिकरण योगनी ऐक्यता,हर्ष,उत्साह,प्रमोद ए सहित, निरामय साधन ए रीते स्थिर शंकादि चपळता 3 रहित सिद्ध नगवानना स्वजाति स्वनाविक गुणे करी ए उपयोग प्रनु गुणे जोमीने एटले गुण गुणगत स्वनावे गुण १ गुण प्रत्ये निन्न निन्न उपयोग जोमी तन्मयपणे अनुनविने अनेद स्वरूपे परिणमावे त्यां कार्यनी पूर्णता पामे एटले १ कोइ देशथी पामे अने को सर्वश्री पामे, देशथी पामे ते १ चोथे गुणगणे समकित पामे अने सर्वथी पामे ते तेरमे गुणगणे अरिहंत पदे अनंत चतुष्टयी पामे एम कार्यनी साधकता नीपजे तेने अमृत अनुष्टान कहीए एम तद्हेतु १ अने अमृत ए बे अनुष्टाने वर्त्तता एवा दीर्घदृष्टिवंतने आ त्मानंदी कहीए. (३) PRECreGRA SANGABADESHDOORDARSDOG PresordGrenorror@nare Grammar (७२) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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