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________________ Break १ मनी अशुन (३७) प्रकृति हे. ए घाती कर्म अघाती बेहुनी मलीने (७२) पाप प्रकृति थ तेमां जे घाती कमनी(४५)प्रकृति कही ते तो एक आत्मज्ञान अने बीजु श्रामध्यानयोगे निश्चय खपे ए कर्म प्रकृति आत्मप्रदेशथी श्रात्म ज्ञाने बेदाय. वळी अघाती कर्मनी(३७)प्रकृति कह। ते आत्मज्ञान अने आत्मध्यानयोगे खपती नथी कारण के अघाती कर्मप्रकृति उत्कृष्ट रस जे बांधेली होय ते बहुधा नोगववी पमे ले तेमां जे व्यापकपणे नोगवे तेने पानी & पुनरपि बंधाय अने ज्ञानध्यानगत व्यापक थर उदय श्रव्यापकपणे नोगवे तेने निर्जरा थाय पण बंधाय नहि. 3 माटे कर्मनो नाश करवो अने मुक्तिनां सुख सेवां ते तो एक ज्ञानयोगे मळे ते माटे कयु के, नहि ज्ञानतणी छे ? जोमीरे, एटले ज्ञान गुणनो बरोबरीयो, तप प्रमुख कोश गुण निर्जरा हेतु नथी, एम सर्व पंमितोनी बोली बे, माटे हूँ ज्ञानयोगने शुद्ध तप जाणवो.. वळी मात्मरत्येक लक्षणं, कहेतां आत्माने रति एटले १ परमानंद पामवानुं एक ज्ञान एहिज लक्षण जे. एटले आत्माने ज्ञानयोगे आनंद प्रवर्ते जे. इज्यिार्थोन्मनीलावा, १ कहेतां ए ज्ञानयोगी मुनीश्वर जे ते केवा ने तो, आ नव ६ आश्री, वळी परनव आश्री कोइ प्रकारे इंडियजनित ११ विषय सुखना तो अर्थी नथी, वळी या नवमां यशकीर्तिना 0 बळी बहु मान पामवाना, पुजावाना, मनावाना, तो अर्थी ) ६ नथी. वळी बहुश्रुतपणानो, तपनो, व्रतनो मद नथी, पांच ६ (१०३) ProGOOOKGRORAGERSorangeenear MPERI Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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