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________________ FRe GreamRASAREERAGmal Gram १ इंजिना लोग सुखमां रमे नहि, एटले पांच इंजिना तेवीस , ६ विषयथी श्रणश्च्छाए प्रवर्ते , कपट रहित सरळ वृत्ति १ . वळी परनव देवगति पामुं, था, अथवा इंजनो सामानिक थालं, अथवा चक्रवर्ति, वासुदेव, बलदेव थालं, राजा था, शेठ शाहुकारनी पदवी पामुं , अथवा पुत्र, कलत्र धनादि पामुं, एवो नाव मनमां, ज्ञानयोगी सर्वथा न राखे. वळी श्रावमा गुणगणेथी जीननाम कर्म बांधुं, एम पण ज्ञानयोगी चिंतवे नहिए पद चोथा गणाथी सातमा गुणस्थानक सुधी बंधाय ने अने आपमे गुणगणे तो जीन नाम कर्मनो बंधविच्छे डे. वळी स्वार्थ सिद्ध विमानना देवतुं सुख पण ज्ञानयोगी इच्छे नहि अने पुन्यने नटुं जाणे नहि, ते मोक्ष सुखसाधक कहेतां ते ज्ञानयोगीश्वर र मोक्षनां अव्याबाध सुखनो साधक थाय. (५) ज्ञानसार ग्रंथे, ज्ञानाष्टके: श्लोक. निर्वाण पदमप्येकं नाव्यते यन्मुहुर्मुहुः । तदेवशान मुत्कृष्टं निबंधो नास्ति नूयसा ॥२॥ अर्थः-निर्वाण पद कहेतां जे पदने विषे जन्म मरण नथी, वळी श्राधि व्याधि नथी, क्लेश, संताप, आपदा ६ नथी एवं एक मोक्षपद एटले कर्मनो नाश करवाथी, संपादन करेलुं निज स्वरूप अवस्थान रूप जे पदने निhण पद कहीए. मप्येकं कहेता ए निज स्वरूपने विषे ६ NAGGARGORAGARGIRGAOGIRare SORGre Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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