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________________ સ્તવન અધિકાર. RAGrorenormore बाद साकर थकी अतिय मीगे ॥ पंथ जीनराजनो ॥ए , आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ पंथ नीज व्यनी वृत्तिये अनुनवे, अव्यपर अनुन्नव दूर करवो ॥ रमणता चेतन गुण पर्यायमां, साध्य साधन पणो तीहां वरवो ॥ पंथ० ॥२॥ संवर निर्जरा तेहने कीजीए लीजीए रत्नमयी सार मेवो, निर्विकल्प एकत्व अन्नेदमां, गुण पर्याय स्वन्नाव लेवो ॥ पंथ० ॥३॥ शुद्ध परिणतीए चेतना परिणमी, इंद्रि योगादि उपयोग खूटयो ॥ शत्रु मोहादि परिवार संयोगता, आत्म प्रदेश रहेवास त्रुटयो ॥ पंथ ॥४॥ मंगळ कल्याण आनंद पद संग्रही, सादि अनंत नंग सिद्धि गमी ॥ गुण पर्याय स्वन्नाव अनंतमां, आनंद लहरी विलसंत पामी ॥ पंथ० ॥ ५॥ परम पद पामवा पंथ ए. अनुनव्यो, स्थिर श्रद्धाए निरधार कीधो ॥ तारंग तीर्थे । अजित जिन नेटतां, रुदीयें अंतः अमृत पीधो ॥ पंथ० ॥६॥ कारणे कार्य निष्पत्ति कही साधना, उपयोग नाव सहाय वरतां ॥ ज्ञान शीतळ समकीतादि गुण संपजे, चित्त रमे रहस्य प्रमोद करतां ॥ पंथ० ॥ ७ ॥ ॥ स्तवन ॥ ६ हुँ । ॥नोयणी श्री महिनाथ जिनुं ॥ . GraGROGGAGROGre मलिनाथ शीव साथ सार्थवाद कहीएरे ॥ संघ १ 9 चलावे सिद्ध तीर्थ पति सहीये रे ॥ संघ चतुर्विध सम-है हे किती नवि लहीये रे ॥ अंतर उपयोगवंत चेतन गुण ७ PosdiseaseemaDARA AVM.. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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