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________________ noon.com SAMIRRC ForesreGMRAGRARASIMRAGrexing १ ग्रहीये रे ॥ मनि ॥ ए आंकणी ॥१॥ चोथाथी चउद@ मा लगे संघ कहीये रे ॥ श्रावक श्राविका सार पंचम गण वहीएरे ॥ प्रमत्त अप्रमत साधु साधवी त्यागी लही ये रे ॥ पूरण आज्ञावंत व्यवहार मुख्य रहीये रे ॥ मलिक ६ ॥॥ उपरांत शुद्ध व्यवहार ने झानी ध्यानी रे॥ मुख्यता निश्चय साथ दशम अंत गणी रे ॥ त्यांथी यथा ख्यात संयमी मोह हानी रे॥ साधन आत्म अन्नेद अनंत PE गुण ज्ञानी रे ॥ मलिः ॥३॥ संघ चउन्नेद समुदायनो 6 प्रवाहेरे ॥ प्रयाणको मसिनाथ समाधि स्वन्नावे रे ॥ मार्गे शत्रु मेहेवासी तीहां आवे रे ॥ सैन्य तणो नही पार अतुल बळ दावे रे ॥ मलि ॥ ४॥ अनादि मिथ्यात अनंतानुबंधि नट बळीबारे ॥ देखी जिनपति साथ नाग्या थर गळीयारे ॥ शत्रु सैन्य मां थयुं जरा नरीया ) रे ॥ शुक्ल ध्यान ज्ञान आंचे मोह राय जळी रे ॥ महि० ॥ ५॥ दृष्टांत एक आपुं नबुं उपयोगे रे ॥ काष्टे उधे वळगे जिम संयोगे रे ॥ काष्ट सत्ता प्रगटे जदा तव नागे रे ॥ अग्नि जोर तीहां वाधे उधेश नही लागे १ रे॥ मल्लि० ॥६॥ उपनय करशं तेहनो चित्त देरे ॥ अज्ञान योगे कर्म ग्रहे गुण खोरे ॥ जीवाजीव सत्ता १ निन्न जाणतां जूदारे, दायक लब्धि प्रगटयां कर्म जळा६ रे ॥ महिः ॥ ७॥ चरण यथाख्यात पाम्या अंत गण १ दशमे रे, त्रण कर्मनो घात क्षीण मोह दुवा दशमे रे ॥ हे शुद्ध परिणति रीफे चेतनराय वशमे रे ॥ अनंत चतुष्टी १ (२४२) GORAGAGRAGIRAGrnar GARAGAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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