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________________ સ્તવન અધિકાર. अनोपम, निराकार शीवसंत ॥ इत्यादि अनंतुं, अनुभव ज्ञान लड़ंत ॥ ३ ॥ योग रोध योगी, सैलेश करण कंप || आयुष्य अंत बेमे, देव देवीना संप ॥ उच्छवनुं कारण, निर्वाण मंगलिक गावे ॥ ज्ञान शीतळ हरखे, ज्योतिमां ज्योति समावे ॥ ४ ॥ ॥ थोय जोडो ॥ ॥ थो. ॥ ॥ संखेश्वर पासजी पूजीए ॥ ए देशी ॥ वीतराग अरिहंत पूजी, केवळ नाण दर्शन लीजीए ॥ कर्म कलंक सब परहरी, निकलंक कन्या सिद्ध वधु वरी ॥ १ ॥ नंदज्ञानी अनुभवी आतमा, निजपर सत्ताजीन महातमा ॥ रूपक श्रेणी आरोह ध्यानातमा, सवि जैन या सिद्धातमा ॥ २ ॥ षट्द्रव्य वस्तुने ओळखी, गुण पर्याय स्वभाव लक्षण लखी ॥ परपांच अजीव अकारणी, श्रतम ज्ञानी धर्म धारणी ॥ ३ ॥ एही देव परमातम कीजीए, सेवे सुरनर इंद्र मन रीजीये ॥ तीहां ज्ञान शितळ जश लीजीए, परमानंद मय रस पीजीए ॥ ४ ॥ इति स्तुति अधिकार संपूर्ण. ॥ अथ स्तवन अधिकार ॥ स्तवन ॥ १ ॥ लुं ॥ समकितनुं ॥ ॥ तुम तजकर राजुल नार तज्या सब घर रे ए देशी ॥ धन्य धन्य दिवसने धन्य घमी बे आजे ॥ समकित गुण पायो सिद्ध हु निज काजे ॥ मिथ्यात्वने दी ओ ( २३६ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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