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________________ GRO.ORGAR GARGAGARGori GRAGARAGARAM PSIRMIRMIRRORGARHIRGames तुति अधि४२. देवगुरु कह्या ए, जीन वचने दृढ चित्ततो ॥ शक्ति नाव प्रणमन करीए, व्यक्ति सनातक सिद्धतो ॥ १॥ वस्तु स्वन्नाव सिद्ध साधनाए, रमण स्थिर गुण पर्यायतो ॥ निर्विकल्प रस पीजीये ए, ज्ञान अन्नेदता पायतो ॥नाव संवर शुद्ध निर्जराए, कर्म अनंत क्ष्य थायतो ॥ निर्मळ निरंजन बुद्ध थश्ए, सर्व संत सिद्धरायतो ॥ ॥ केवळनाण दर्शण सहीए, धर्म दान दातारतो ॥ हित उपदेश जव्य जीवने ए, करता वारंवारतो ॥ बोधि बीज विरती लहे ए, नरनारीना वृंदतो॥ गणधर सूत्र दुवादश रचे ए, ते 3 ज्ञान नाण पवित्रतो ॥ ३॥ सर्व देवनो देव डे ए, निजातमे शुद्ध सिद्धतो ॥ सूत्रग्रंथनी साख्यथीए, गुरु वचने परतिजतो ॥ ज्ञान शीतळ जुए तेहने ए, आगम अनोपम 3रूपतो ॥ सेवे पूजे समकितिए, देव देवांगना बेपतो ॥४॥ थोय जोडो॥ ३ जो ॥ १ ॥प्रह उठी वंषु ऋषनदेव गुणवंत ॥ ए देशी ॥ सिद्ध बुद्धने वंडं, नीज रूप निहाळी ॥ उपयोगे ना, बोधि बीज तीहां लाळी ॥ शुद्ध श्रधा साची, चिद ६ घन नोग संयोग ॥ उपाधि हणतां, परमातम निरोग ॥१॥ , रोग शोग दुःख कापे, महा मोह मल नागे ॥ ज्ञान सुन्नट बळी, ध्यान अग्नि तीहां जागे ॥ कर्म काटने बाळे, तीहां शितळता वाधे ॥ परमानंद जोगी, सर्व ॐ सिद्धता साथे ॥२॥ अरूपी अवीनाशी, अव्याबाध अ-, हे नंत ॥ निरमळ निरंजन ॥ अखंमित महंत ॥ अचळ (२३५) GrGroorrearraGRAMOG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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