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________________ Seaso PAGrecordGARDAGOGRG श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ( अर्थः--उत्कृष्ट पद कहेता, पदना बे नेद उपाधिज नितपद, निरुपाधिजनितपद तेमां उपाधिजनितपदना बे नेद. प्रशस्त, अप्रशस्त. प्रशस्तना बे नेद, देवेंज, नरें, है ॐ हवे निरुपाधिजनित पदना वे नेद कहेडे, एक व्यवहार, १ बीजं निश्चय. व्यवहार निरुपाधी पदना त्रण नेद समकित है। ( मूळ योग्यताए कहे बे, आचार्यपद, उपाध्यायपद अने हैं साधुपद तेमां प्रथम आचार्यपद कयु डे ते पदमां गणधर है पद कहीए, वा गीतार्थ कहीए, वळी बहु श्रत कहीए, ते सर्व पदनो समावेश आचार्य पदे थाय , एम जाणवू. हवे निश्चय निरुपाधि पदना त्रण नेद कहे बे, एक जघन्य, बीजो मध्यम अने त्रीजो उत्कृष्ट, जघन्य निश्चय निरुपाधिपदतो क्षीणमोह बारमा गुणगणे वीतराग नावे, रागद्वेष अशुद्ध परिणतिनो वळी मोहनो उपाधि जाण। ध्वंस करीने यथा ख्यात चारित्र पाम्या ते पहेलो नेद कह्यो, हवे बीजो नेद मध्यम निश्चय निरुपाधिपदतो तेरमा चाँदमा " गुणगणे वर्त्तता, एवा परम पूज्यने अरिहंत पद कहीए. शहां चौघाति कर्मनी उपाधि आत्म प्रदेशथी टळी ठे अने अघाति कर्मनी रही डे माटे मध्यम कह्या, हवे त्रीजो नेद निश्चय निरुपाधि उत्कृष्टपद, तो अयोगी चौदमा गुणगणाना अंते एटले लेखा समये चौअघाति कर्मोनी ७ उपाधि आत्मप्रदेशे हती ते टळी; कार्मण वर्गणा रहित ६ ९ आत्मप्रदेश थया, श्हां उपाधिनो अन्नाव थयो, माटे उत् , ६ कृष्टा निश्चय निरुपाधिक पदने सिद्ध नगवान कहीए. ६ (११८) STRAGRAGrena GoraRGRO nsornerBGADGAGRO GRAgroma Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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