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________________ HTTORGOOGGxxangrGram श्री धर्म प्रवर्तन सार. ६महा मंगलिक, कहेतां सर्व मंगलीकमां मंगलीक, जीहां अपमंगलीकनो संलव त्रण काळमां आवे नहि, माटे, 9) महामंगलिक कहेतां कल्याणकारी, उत्कृष्टमंगलिक ते ४ निजात्म शुद्ध स्वरूप,निश्चळ अवस्थानरूप सिद्धनेज कहीए, है द, बुद्ध कहेतां सिद्धनगवान ले ते अविनाशी पंमित जे. एटले ६ पंमित जे ते ज्ञानी , पण नणीने जुले तेने विनाशी & पंमित कहीए अने सिद्धनगवान तो केवळ ज्ञानरूप बोध पाम्या , ते बोध त्रण काळमां जाय नही, तेम न्यूनता पण पामे नहि, माटे अविनाशी पंमित कह्या ज्ञान नानुवि शुद्ध कहेतां केवळ ज्ञानरूप सूर्य जे ते विशुद्ध कहतां घणो " उद्योत प्रकाश कर्ता बे, कारण के जे सूर्यनी ज्योति बे, ते जम ज्योति ने एटले रूपीपदार्थने देखामवा वाली अने जे केवळ ज्ञाननी ज्योति . ते आत्मजनित अरूपी ज्ञान ज्योति बे, वळी सूर्यनी जमज्योति ले ते तेनी मर्यादा पूर्वक प्रकाश करे अधिक न करे अने केवळ छाननी ज्योति ले ते लोकमाने अलोकमां; वळी लोकमां रहेला जीव अजीवादि रूपी अरूपी सर्व द्रव्यने विषे, वळी अतित अनागतने वर्तमान ए त्रणे काळनी वर्तनाने विषे, उत्पाद व्यय अने ध्रुव संयुक्त एक समये जाणे, कोइ जग्योए झान ज्योति खळाय नहि वळी सूर्य प्रकाश करे ते पोता नां कीरण वीस्तारीने करे डे अने सिद्धात्माने तो केवळ ॐ ज्ञानरूप अरीसो चारे तरफ आवरणना अन्नावे, निर्मळ ६ थयो बे. तेमां उपर कही ते प्रमाणे त्रणे काळनी, पंचास्ति reader Dongrong ROBORDER. GareradorOSBIGrade P Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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