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________________ Birendranagar શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. कायनी वर्तना प्रतिबिंबीत थाय अने तेमां पोते लेपार्य पण नहि, एवी केवळ ज्ञाननी अद्भूत ज्योति तेने परम ज्योतिवंत है कहेतां उत्कृष्टी ज्योतिवंत कहीए, परम | पवित्र कहेतां सिद्धात्माना आत्म प्रदेशे अन्य पदार्थनो छ एक परमाणु मात्र पण उपाधि संयोग संबंध रह्यो नथी; पोते पोताना शुद्ध स्वनावे तद्प , माटे उत्कृष्टा पवित्र सिद्धनगवानने कहीए. वली प्यारो कहेतां समकिती, के से देशविरति अने सर्व विरति जीवोने गुणरागीपणे, गुणने जाणी उलखीने गुण प्रगट करवानी बुद्धिए सिद्धनगवाइननी स्तुति करतां, गुण गातां नावना लावतां वळी ध्या नगत समरण चितवन करतां थकां जे सुखन्न बोधी जीवो 3 ते प्रमोद पामे आनंदीत थाय माटे सिद्धात्माने प्यारोज कहीए; ज्ञानानंद जोगी न्यारो कहेतां उपर सुबन बोधी जीवाने सिद्धनगवान प्यारा कह्या, पण सिद्धात्मा तो ज्ञानानंद परमानंद, नोगी सबसे न्यारा . अव्या वाध सुखसारो कहेतां सम्यक् झानीने अनुमोदवा योग्य, सचि करवा योग्य, अनिलाषा करवा योग्य, एवं जे अव्या १ बाध सुख, सिद्धनगवानने प्रगट थयुं बे, तेमां एक अंशे पण उबाश रही नथी, तेम सुखनी पाबळ बाधा पीमा अचानक आवशे तेवो नय पण रह्यो नथी, माटे निर्नय थका अबाधितपणे अनंतु सुख स्वाधिनपणानुं नोगवे , तेथी ज्ञानीए अव्याबाध सुखने सारो कह्यो छे अने सर्वार्थ है ६ सिद्ध विमानवासी देवना छीजनित पुद्गलीक सुखनी Rangor ies Browse RSEEGrenawesomorphoreonardanwrongengrong. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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