SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ॥ ढाल चोथी ॥ ॥ देशी रसीयानी॥ 5 श्रीश्रावक धर्म आराधीएरे, समकित मूळ प्रख्यातरे गुण , रसीया, स्थुल अणू व्रत पंच नेदथी रे, तेमां प्रथम दयाधर्म वातरे, गुण रसीया ॥१॥ त्रस स्थावर दया नेदथीरे, • स्थावरनी दया नहि कीधरे, गुण रसीया; दश वसा गया 6 तेहनारे, रह्या त्रसना दश प्रसिद्धरे, गुण ॥ तेमां कारणे से हणाय जीव तेहनारे, गया पांच वसा ने रह्या पांचरे, गुण॥6. अपराध करे हणुं तेहने रे, तेना अढी गया रह्या अढी न खांचरे, गुण० ३॥ कारण विना निरापराधीनी रे, ग्रहस्थिना घरे अजतना थायरे, गुण तेनो सवा गयो ने रह्यो सवा । 3 वसोरे, संकल्पि न हणुं त्रस जीव कायरे, गुण ४॥ ए है प्रथम अणुव्रत दाखीयुरे, बीजे अलिक नाषानो स्थूल निमरे, गुण॥ कन्याळी नूमाळी गवाळी वळी रे, थांपण मो सो कुमी साख पंच नीम रे, गुण ५ ॥ त्रीजु अदत्त विरमण व्रतमां रे, राजा दंमे ते चोरीनो करो त्यागरे, गुण॥ चोथु मैथुन विरमण व्रतमा रे, वेद विषय त्याग घट वैरा१ गरे, गुण० ६ ॥ सामान्य विशेष दोय नेदथी रे, सामान्ये ६ स्वदारा संतोष रे गुण ॥ विशेष सोय दोरा आकारथी रे, १) तजे विषय अंतर नहि रोषरे, गुण ७ ॥ परिग्रह परिमाण व्रत पंचमुरे, तेमां अधिक मूर्गनो अन्नावरे, गुण॥ परिमाण १ 5 बांधे नव नेदथी रे, तेनो करे लेख लखावरे ॥ गुण ॥ ए पंच अणुवृत कह्यां व्यवहारथी रे, हवे तीन गुणवृतनो ( १७४ ) RAMGsrwadi desi GRamrosarokar@searcheore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy