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________________ GOGGrenore श्री धर्म प्रवर्तन सा२. परीक्षा करीए तो शुद्ध निश्चयनय मूळ स्वरूपे प्रगटे तप जश पामीए ॥ १५ ॥ ढाल सातमी संपूर्ण. हवे आग्मी ढाल कहे . ॥जाय तुज विण घडीरे छ मास ॥ ए देशो ॥ ६ दोय मूल नय नाषीयारे ॥ निश्चयने व्यवहार ॥ निश्चय विविध कारे॥शुछ अशुद्ध प्रकाररे ॥१॥ प्राणी परखो आगम नाव ॥ ए आंकणी. अर्थः-शहां अध्यात्म नय नाषाए तो आगम केहेतां ट्र सूत्र सिद्धांतनी मांहेली कोर मूळ बे नय प्ररूप्यां डे निश्चय नय अने व्यवहार नय, तेमां निश्चय नयना बे नेद कह्याले. शुद्ध निश्चयनय अने अशुद्ध निश्चयनय. हवे तेनो अर्थ सांनळो. हे नव्य प्राणी आत्महित अर्थे सूत्र साक्षीए, गुरू वचने, श्रवणयोगे, स्थिर मने हेयझेय उपादेय बुद्धिए शुद्ध अव्यास्तिक नय उपयोग लगावी पर्यायास्तिक नय शुद्ध साधन रूप व्यवहार नेळी अशुद्ध निश्चय है 5 नय पलटावीने शुद्ध निश्चय नय रूपे थए त्यां स्वस्व६ नावे सहज अकृत्रिम अनुन्नव प्रगटे. ते अनुन्नव ज्ञानने के ६ अनंता चदु बे. ते चदु ज्योतिए अरूपी आत्मानो मूळ 6 स्वन्नाव जो परखो. ए आगम नाव कह्यो. ॥१॥ जीव केवलादिक यथारे ॥शुद्ध विषय निरुपाधि मश्नाणादिक आतमारे ॥ अशुछ तेह सो पाधिरे ॥ प्राणी। (३७) PUBeION ForeAGRAMRAGreAGARAGreAGre GreAGRAMMEAGre manore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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