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________________ MIRMIRMIRE GrenorangIRGEORA १ पर्याय पर्यायगत, एम व्यापकपणुं परिणमनपणुं सिध्ध नगवानने विषे , एटले एक गुण बीजा गुणमां न व्यापे, एक पर्याय बीजा पर्यायमां न व्यापे, ने परिणमे, वळी ( अन्य अव्यना गुणपर्यायमां पण न व्यापे न परिणमे त्यारे कीहां गुणपर्याय परिणमे ते कहे , असंख्य प्रदेश त्यांही कहेतां सिध्धात्माना असंख्याता प्रदेश डे त्यांही कहेतां ते प्रदेशोने विषे एक एक प्रदेश प्रदेश प्रत्ये, अनंता गुण अने अनंता पर्यायनुं व्यापकपणुं परिणमनपणुं , अन्य बीजा जीव अजीवादि द्रव्यना प्रदेशमां न व्यापे न परिणमे, सही कहेतां निश्चय निज कहेता पोताना गुणपर्यायने रहेवानु, वसवानु, प्रदेशने विष व्याकपणुं परिणमनपणुं कह्यु, तेज खेत है के सिद्ध नगवानने स्वदेत्र जाणवू एही अवगाहना कहेतां जे सिद्धात्माना असंख्याता प्रदेशनो निविरुघन अयोगी चौदमा गुणगणाना अंत समय वनेलो, एज सिद्धात्मानी अवगाहना कहीए, ए प्रमाणे एटले जेम एक सिद्धनुं ए कह्यं तेम अनंतासिद्धनुं स्वदेत्र तेहीज अनंती अवगाह१ ना कहीए एटले अवगाहना कहीए ते सिद्ध अने सिद्ध कहीए ते अवगाहना जाणवी, एकमां अनेकता कहेतां १) जीहां एक सिद्धनी अवगाहना ने तीहां अनेक सिद्धनी , अवगाहना रही ले. तेमां कोश्नी उन्नी ने कोश्नी बेठी १ 5. कोश्नी चित्ती जे. कोश्नी पासानर . कोश्नी पद्मा- है सने बे. कोश्नी विकटासने बे. वली कोश्नी लघु ले. को- ६ (१२२) GPAGRAGRIGAROOG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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