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________________ OMBreMOREMOISS RamroSIXERangore श्री धर्म प्रवर्तन सार. ६) श्नी गुरु . लघु डे ते बत्रीस आंगलनी डे अने गुरु ले ते त्रणसानेतेत्रीस धनुष्यने बत्रीस आंगळनी ले थने १ मध्यस्थ अवगाहना असंख्यात नेदे. न्यूनाधिकपणे सि द्धमा रही . एटले चौदमा अयोगी गुणगाणे सैलेसीकहरण अवसरे जेवी रीते पोतानी कायानी स्थिति हती तेवी से रीते सिध्धमां अवगाहनाः उपर अलोकने अमीने रही 6 . जे पांचसो धनुष्यनी कायावाला सिध्ध थया अने उन्ना थका मोके गया. तेमनी गुरु अवगाहना जाणवी अने बे हाथनी कायावाला उन्ना थका मोदे गया, तेमनी बत्रीस श्रांगळनी सिध्धमा . ते लघु जाणवी अने पांचसो, धनुषथी मोटी काया अने बे हाथथी नानी कायावालानी सिध्धी प्राये थती नथी, नेगी मली कहेता. जेम उपर कही तेम सिद्ध नगवाननी अवगाहनाओ नेगी एटले एकमां 3 अनेक नेगी मळेली कही. निन्न सदा कहेतां, तोपण सदा ६ सर्वदा निन्न ने यथा द्रष्टांते जेम दीवानी मांदेली कोरे र अनेक दीवेटनी वाटो करीने नेगी मुकीये तेनी ज्योति ए सर्व वाटनी एक देखाय, पण वाट वाटनी ज्योति जिन्न 2. जे ज्योति ने ते पोत पोतानी वाटना सबंधे बे. अन्य १ वाटना सबंधे नथी. एक वाट उपानीए ते वखते ते वा टनी ज्योति नोखी निन्न पझे. परंतु नेगी हती. तोपण , निन्न हती ए दृष्टांते सिध्ध लगवाननी अनेक अवगाह6 नाओ नेगी मली , तोपण सदा नीज द्रव्यना सबंधी है। है पणे निन्न . ए सिध्ध नगवाननी अवगाहनाओनी (१२३) Or BreGram.org GOOGLGAGGAR. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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