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________________ સઝાય અધિકાર, BreGGGI हणीने रे ॥ ए नावे अरिहंत सिद्ध थावे, अंते योग रोध करीने रे ॥ चारित्र ॥५॥श्रघाति चनो क्षय इहां थावे, १ रूपातित सिद्ध नावेरे ॥ एक नाग पोलारनो बंमी, बेनागे प्रदेश समावेरे॥ चारित्र०॥६॥समश्रेणीए सिद्धि वरियां, विजयशेठ विजय राणी रे ॥ लोकंते अवगाहना बीराजे, अनंत धर्मनी ए खाणी रे ॥ चारित्रः ॥ ७॥ ए सिध्यां 5 सादि अनंतमे नांगे, अकृत्य अनुन्नव वृत्तिरे ॥ निज गुण पर्याय ऐक्यता, न तजे लक्षण आकृतिरे ॥ चारित्रः ॥७॥ निज अव्ये ध्रुवता स्थिर सिद्धमां, ज्ञान शीतळ कृत ज्ञानरे । ॥ सिद्ध राय ज्ञान अकृत आपो, तो रूपातित करुं ध्यानरे । ॥ चारित्र० ॥ ए॥ arovarovaramare ॥ कळश.॥ ॥ त्रिजगन्नासन ॥ ए देशी ॥ ___एम शियळ सुध्धु, त्रिकरण योगे, उन्नय पक्षपाळिये ॥ जाव जीव निश्चळ वृत्तिये, देवगति निहाळीये १॥१॥ शियळे देव सानिध्य करे, शियळे शितळ श्रागरे। शियळे संकट नय हरे, फूलमाळ होय विषधर नागरे ॥२॥ द्रव्य शियळ ए पुन्य कारण, शिव कारण शिळ , जावथी ॥ पुद्गल त्याग अनुन्नव योगे, जावो शिळ था१ स्मार्थी ॥ ३॥ नाव शीयळ एक अनुन्नव ज्ञाने, निज पर ह निन्न होवे सही ॥ शुद्ध पर्याये रमण अनुन्नव, जोगें सिद्धगति ग्रह। ॥४॥ विजय शेग्ने विजया राणी, शियळ अमग पाळता ॥ सावद्य त्याग समदृष्टि डाने, सिद्धगति ७ MEIGHonom GrorarGrammar Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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