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श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ए थशे पण नहि; अने दुनिया महा चक्री कहीने बोले, , १ त्यारे मारी मोटप कहेवाय, वळी मारी आज्ञा कोण न १ हैं माने, जीहां जाउ तीहां हुँ एकलोज पृथ्वीने ऊंधी करी १ नाखू, वळी मोटा पहार पर्वतने एक हाथे उपामीने फेंकी • देखें. नुजा बळे समुष तरी पेली पार (सामा कांठे) नी& कलं. एटबुं तो मारी नुजामां बळ बे, एम अठ्ठावीस
धनुष्यनी कायावाळो पोताना बळ पराक्रमनी अधिकता 6 जोश्न मदोन्मत थयो थको लोनरूपी सागरमा तणा-6 है तो थको ऋद्धिनी अपूर्णता लावतो थको जगतने तरणा प्राय गणतो थको बीजा उ खंगमां, जश् चक्र प्रवर्त्तावी श्राझा मनावु एम निश्चे पोताना मन साथे ठराव कर्यो, चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख घोमा, चौरासी लाख रथ, बन्नु कोम पायदळ, एक लाखने बाएं हजार अंतेकरी, सेनापति, प्रधान, आदे चनद रत्न, नव निधान, इत्यादि रुद्धिए युक्त थको पोते प्रयाण करे . शद्धि गवेखी ते सर्वे चरमरत्न वहाणमां नरीने पोते बेगे वहाण लवण समुज्ना मार्गे अनुकुळ पवनयोगे वेगे चाट्यु जाय बे, ए वहाणना रखोपामां पचीस हजार तो देवो वहाणना उपामनार , पुन्य खवाइ गयुं, ए चक्रीनुं साठ
हजार वरसनुं आयुष्य हतुं, तेनो अंत (डेमो) श्राव्यो, १ देवो चिंतवे के के हुँ एक नहीं उपाठ तो बीजा घणाए
, एम सौनो साथे मनोरथ थयो, सर्व देवोए मेली दीधुं है ॐ वहाण समुअमां मुब्यु अने सर्व ऋद्धिनो नाश थ गयो, शुPanorm ouTRAN
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