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________________ RITAGGGERBERASARGITA श्री धर्म प्रवर्तन सार, जूम मरीने सातमी नरके गयो, एम लोनी नरनो लोनरूप है ६ खामो सदा अपूर्ण , एम जाणी लोनदशाने धिक्कारी ६) निर्लोनी थर जेम कपील ब्राह्मण केवळी थया, एम निलों जताने न आहे; अने लोन सागरमां मुवी सागर जळ हे पीतां पण तृषा न लाजे, तेने नवानिनंदी कहीए. (५) । २ हवे उठं लक्षण रति एटले शातावेदनीना हेतु ते पांच शीना अनुकुळ विषय, शब्द, रूप, गंध, रस अने स्पर्श; शब्द ते श्रोत इंडि, जे कान तेनो विषय एटले रागरागणी, सुस्वरनो नोगी, वळी नरघा, शरणाश, ताल, तंबुरा इत्यादि वाजींना शब्दनो लोगी, रूप (वर्ण) ते रातो, से धोळो, लीलो, पीळो अने श्याम, ए पांच वर्ण वळी सं3 स्थानादि लिंग आकार चेष्टा ए चकुनो विषय जाणवो.वळी गंध ते, सुरनी आदि नाकनो विषय, तेस फुलेल चंपो, केवमो, मोगरो, गुलाब, श्त्यादि तेनो नोगी. रस ते कमवो कषायलो, तीखो, खाटो, अने मधुरो ए पांच रस तेनो जोगी. रसना एटले जीव्हा जाणवी. वळी स्पर्श ते, शीत, उष्ण, सूवाळो, बरसट, स्निग्ध, रुक्ष, हळवो अने नारे ए आठ स्पर्श जोगी ते स्पर्श इंडि एटले काया. वळी वेदचीन्ह, स्त्री, पुरुष अने नपुंषक, ए वेदना नोग विषयनो सकामी तेमांज आशक्त एम पांच इंजिना विषय जोगमां : जे, रति विश्रामनो कर्ता वळी हुँ ने मारूं एटले हुं ते का-७ याएज जीव बुं एम जाणे पण जीव कायानी जूदाइ न जाणे; वळी धन दोलत, राजऋद्धि सज्जन कुंटुंब ए मारु , Pance mergs BaBASABGABAD Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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