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________________ Pordered GreeRAMASOOMOS श्री धमे प्रवर्तन सार. ६ साधन प्रवृत्ति कहीए. शहां परन्नावनो त्याग कह्यो. तेने १ समजवो एटले पोताथी अन्य जे बीजा अव्यनो स्वन्नाव १ तेज परन्नाव त्याग कह्यो एटले जीवने परतावनो अनादि संबंध परंपराए चाल्यो आवे , ते बुटयो एटले ज्ञानावरणादि आप मूळ कर्म प्रकृति अने उत्तर एकसो अगवन प्रकृति मिश्रित अनादि संबंधे चेतन हतो ते कर्म खजानो खाली कयों. एवी शुद्धता कसा प्रगटी तेनुं नाम साधन शुद्ध प्रवृत्ति कहीए हवे उपर कह्यो जे वस्तुप्रवृत्तिनो पेहेलो नेद ते श्रावरणना अन्नावे वस्तु स्वन्नावनुं प्रवर्तन अनंता काळ सुधी प्रवर्ते ते वस्तु स्वन्नाव साध्यमां लाववा रूप साधन तेनेज लोकोत्तर साधन कहीए. . हवे बीजो नेद लोकिक साधन ते स्यादाद दृष्टि रहित अने मिथ्यानिनिवेष सहित तेने लौकिक साधन कहीए. हवे त्रीजो नेद कुपरावचनीक एटले सूत्र सिद्धांत अनुसार विना जे साधन कर, करावq उपदेश करवो ते सर्वने कुपरावचनीक साधन प्रवृत्ति कहीए, ए साधन प्रवृत्तिना त्रण नेद कह्या. हवे लौकिक प्रवृत्ति ते लोकना स्वस्वदेश अनु, कुळ चाले प्रवर्ते वळी आ जीविकानो अर्थी, आवता नवे पुन्यनो अर्थी, जशकीर्त्तिनो अर्थी पूजावा मनावानो अर्थी २ पोतीको मत स्थापन करवो, चलाववो तेनो अर्थी इत्यादि सर्वने लौकिक प्रवृत्ति व्यवहार कहीए, एम व्यवहार नयना नेद जाणवा. उळखाण करवी. तथा द्वादशसार नयचक्रमां GARAGreAGAR GARAGNBABASAGARAGrenore (30) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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