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________________ NAMr. mroBSNOMIRMIRMERGERMARG ६ नथी अने नर्कमा तो, तीर्थकर नगवाननां कट्याणक अवसरे , जीवअंतरमुहूर्त सातावेदे एटलो दुःखना विरहकाळनोसंनव १ । नर्कमा बे, वळी नर्कमा.तो कोश्क जीव समकित पण पामे है a माटे निगोदनी अपेक्षाए तो नर्क सारी बे; पण बेहु गतियो दुःखमयी . तेनुं मूळ कारण ए डे के पोतानो तत्व न जाएयो अने परने पोतार्नु मान्युं, माटे हे चेतन ! 6 हवे समज अने तुं तारा तत्व उपर दृष्टि कर, ने पर उपरथी पोतापणानी दृष्टि टाळ अने हवे पोताना तत्वने जु-6 लीश नहि. ने परने विष पोतापणानी बुद्धि करीश नहि, एम अनुन्नव युक्त परिपक्व ज्ञानयोगने घटंतर वृत्तिए क्षय उपशम नावनी सहाय मलवाथी योतिरूप प्रकाश (उद्योत) कर्ता, सहजन्नावे थयो । जेने, ते पुरुषोत्तम उद्वेग केम पामे. अर्थात् नहि पामे; समन्नावं कहेतां एक पोताना खन्नावे १ थया, एटले स्वन्नावे थया एम क्यारे जाणीए के, शुन्ना शुन बन्ने वस्तुने विषे समदृष्टिए जोनारा एटले शुनाशुन्नमां दृष्टि नहीं करवावाळा तेनो रहस्य एम डे के जे पुरुषो , मोहित ने ते मनोज्ञ रुमा पूगल तेनी अनिलाषा करे डे तेनु नाम विन्नाव ए विनावनो नाश थयो ने इच्छानो ऐ रोध थयो जे जेने एटले निर्मोह वृत्ति थ दे, उपयोग दृष्टि पोताना सहज नावमा स्थापी . तेने समन्नाव कहीए. ट्र चळाचळं कहेता जे मननी चपळता ते नाश पामी , जे पुरुषोत्तमनी, एटले मन जोग ने अंतरगत, मनन है है जुवन , तीहां ज्ञानरूप खीले अने समाधीरूप दोरमे SearcornerBroremaroongreGugram SAANDMARi Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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