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________________ PROGreen FRICAGARAGARAAREERINAGACAarag १ झान, दर्शनादि गुणे युक्त शाश्वतो, एज मारो एम जाएयुए बे, सद्दयुं बे, वळी ए शिवाय जे बीजं अन्य प्राप्त थयुं ते " पूर्वकृत कर्मयोगे अने उदय संयोगे मह्युं, ते बाह्यन्नाव : , मारी ने एनी वस्तुगते जुदाइ , ए संयोग संबंधने ६) पोतानो मानीने में आ संसार चतुर्गतिनमणचक्रमां न६ मतां थकां, अनंतां पुद्गल परावर्त्त पूर्वे कीधां, नर्कनिगो दनां अनंतां पुःख, असंख्यातो, अनंतो काळ पर्यंत सह्यां, 3 वळी फरी फरी दुःखनी परंपरा पाम्यो, तेनुं मुळ कारण ए डे के में परने पोतार्नु अझानपणे, वळी श्रणानोग. है मिथ्यात्वे अनादि संबंधे मान्युं, बीजु नथी, वळी गुंजा जीए के हे चेतन मिथ्यात्ववशे तुं तारा ज्ञानदर्शन तद्रूप बोधने गमावीश, अने फरीथी पाडं परने पोतानुं मानीश, तो चतुर्गति नवचक्रमां ब्रमण करतां थकां अनंतां दुःखनी परंपरा पुनरपी नर्क नीगोदआदि गतिने विषेपामीश अने नर्कना दुःखनो विपाक तो अति कटुक, ते यहां वर्णववा बेसीये तो ग्रंथ गौरव थ जाय, माटे हे नवन्नीरु नाश्यो १ तमे सिद्धांतथी वा, सद्गुरुना उपदेशथी जाणी खेजो अने १ निगोदनुं दुःख तो सातमी नरके एक पाथमो के अने तेमां पांच नावासा बे. तेमां वचलो, अपेगण नामा नावा समां सर्वोपरी अनंतगुणी अधिक वेदना ले ते दुःखना वर्ग ६ करीए, तेने वळी अनंतगुणो करीए, एम अनंती रासीए १ निगोदीयो जीव अव्यक्तव्यपणे, अनादि संबंधे दुःख नो. 3 गवे ते दुःखनो विरहकाळ एक समय मात्र पण निगोदमां ६ actor General SEAVERA Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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