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________________ याय, वा लोनमा उनाश थाय, तीहां विरोधनो संन्न , ६ आवे; ए बे प्रकृतिने जेणे पूंठ दीधी जे. एटले पूंठ दीधी १ ) एम क्यारे जाणीए के जे पुरुषो पोताना तदगत श्रात्म६ स्वरुपना चिंतक ले. सत्ताए रहेली ज्ञानादि अनंता गुण ई, श्रने अव्यावाधादि अनंता पर्याय तद्प ऋद्धिना जाण ॥ . परंतु दायक नावे ए ऋद्धिनी प्रगटताना अन्नावे 6 & पोताना आत्मानी लघुता नावे हानि चिंतवे तीहां माननो असंजवडे. वली देवेंष नरेंजादि पदनी इंजिनोइंजिनित 6 जे विषय सुखनी हेतुचूत एवी तेमना ऐश्वर्यपणानी पुद्-* गलीक विनाशिक ऋद्धिनी उकुरा तेने जे पुरुषो अलच्छी माने तीहां लोननो असंनव बे. वली सर्व जीवरा शीने सत्ताए सरखा सिद्धना बरोबरीथा स्वजाति जाणीने ( स्वामीत्व संबंधे मैत्री नावना नावे . तेमनु नखं चिंतवे ) १ ते पुरुषोत्तम विरोधि नावथी विमुख ले. तेमने अवि रोधी कहीए वली ए पुरुषोत्तम केवा ने तो मनुढेग कहेतां १ उद्वेग पामे नही. एटले उद्वेग पामवानुं कारण ए के टू जेणे पोतानी कायाने पोतापणे जीव मान्यो बे. वळी १ सजन कुटुंबादिने पोतानुं मान्युं बे, वळी धन,दोलत, राजमहेल, राजऋद्धिने मारी मानी ते जीवने ए ऋद्धिनी हानि थाय, विनाश थाय, तेथी उद्धेगता श्रावे, संताप करे, हुं निर्धन थइ गयो दारिख अवस्थाने पाम्यो, निकुकवत कं- १ #. गाल पर गयो, थारुं थर गयुं, एम वार्तध्याननो ध्याता, ४ थाय, तेने उद्धेग कहीए; परंतु जेणे एक पोतानो आत्मा, ७ LEANERGarecords SaroornawareneureGBGRGramoortoory Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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