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________________ ६ एटो कचन कामनी पोतापणानो मम जेणे, एटले १ શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. बांध्यो बे तेथी निश्चल थया डे; अहं ममत्व कहेतां जे हुंने ६ मारुं, श्रा संसारमा लागी रडं बे, ए मोहनी गक बे, एटले हुँ शब्दे पोतानी काया अने कायाथी बीजो जेटलो संबंध, कंचन कामनी आदे राजरिद्धि, जे प्राप्त थ ते मारी वळी ते वस्तुने विषे, पोतापणानो ममत्व बे; परित्यक्तं हूँ कहेतां ते अहंपणाना ममत्वनो त्याग कर्यो जे जेणे, एटले । त्याग तो कर्यो पण केवी रीते कर्यो के, अज्ञान अष्टिए हूँ नहि ज्ञानऽष्टिए कों ने अज्ञानष्टिए तो सिद्धांतमां र कहे डे के, मेरु पर्वत जेटला, उघा मुहपत्ति, कंचन कामिनीनो त्याग करीने ग्रहण कर्या पण समकितनी स्पर्शना थ नही अने संसार खुटयो नही. तेनुं कारण ए के, त्याग करी बोमी तो खरी, निग्रंथ थया, पण परवस्तुथी , मारापणो अनादि संबंधे संझाए चाल्यो आवे . तेहने बेद्यो नथी, एटले तद्गत आत्माने उपयोगगोचर अष्टि प्रत्यक्ष कर्यो नथी तीहां सुधी, परवस्तु मारी नथी. परवस्तुनो हुं स्वामी नथी. एम निर्णय न थयो अने बोमे ते कांतो फुःखगनित त्याग . अने कांतो मोहगर्मित त्याग . पण झान गनित त्याग नथी, ज्ञानगर्जित त्याग तो एम डे के, स्वपर विनाग व्हेंची परवस्तु परपणे जाणी पोताना आत्माना विषे नास्तिनावे रही ले तेनो हुं स्वामी नथी. जे माझंडे ते मारी पासे डे. मारा स्वरुपमां तो कोश वस्तु त्यागवा योग्य नथी. तेम मारा आत्माथी जे अन्य ६ वस्तु . तेमांथी मारे कोई वस्तु ग्रहवा योग्य पण नथी. " हे कयुं वे समाधिशतके:- . Marwaro MAHARAN GRAGrdaare saare - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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