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________________ near TAGORGEOGORROGrammy श्री धर्भ प्रवर्तन सार. १ मांज कडं ले के “मुगतिप्रयाण न नाजेरे” एटले पांचमी । ६ थिरादृष्टि पाम्या त्यांथी. क्षयोपशम नावनी अंतर्वृत्तिये । १ क्रिया करतां मुक्तिना प्रयाणनो नंग न थाय, एटले यात्म सत्ताये रहेलां घाति कर्मदळ तेथी मुक्त थर्बु, एटले निर्ज-१ E) र. फरीने कर्म वांधे नहीं. त्यां मुक्तिनुं प्रयाण थयु एम • कहीए. “ रयणि सयन जेम श्रमहरे, ” के० यथा दृष्टांते ६ जेम को पुरुषने इच्छित नगरे जर्बु बे, परंतु वळवीर्य श-3 तिनी स्फुरता न थक्ष, अने थाकी गयो, तो इच्छित नगरे से पहोची न शके, त्यारे रस्तामां रात रहे पमे, विसामा है करवा पमे अने त्यां शयन करे, एटले थाक उतरी जाय, 6 अने प्रन्नात समये पाली प्रयाण करवानी शक्ति आवे एटले सुखे सुखे प्रयाण थर शके, तेम इहां इच्छित नगर ते मुक्तिपुरीए जq बे, परंतु वीर्य शक्ति स्फुरताना अन्नावे श्रेणी न मांमी शके, तो पहोंची न शके. त्यारे वचमां विसामा रूप देवताना अने मनुष्यना अप्रतिपाति क्षयोपशम समकितनी अपेदाए उत्कृष्टा सात थानव करवा पमे. वळी दायक समकितनी अपेदाए त्रण चार नव करवा १ पमे अने समकितीने बे गतिनोज सुखमय संसार . माटे “ सुरनर सुख तेम जेर” कह्यु. अने दुःखमय नरक तिर्यंचनी बे गतिथी मुक्त थया. एटले बुटया. तेमां बेदला नवे तो मुक्ति नगरे पहोंचवानी स्फुर्णा शक्ति मनुष्यना 9 नवे जरुर पामे अने सिद्धि वरे. ए पांचमी गाथानो है अर्थ कह्यो. REPsgar20RRIES PERSOCrorepareraree Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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