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________________ .ra.........anima.. श्री ९३मातनो रास... १ आकाश खंध लोकालोक त्यांहि, अलोक अंत कह्यो नहीं ६ क्यांह। ॥ वंदो० ॥ ५ ॥ उर्ध्व अधो ति दिके रे, कल्पित १ देश कहाय ॥ धर्म अधर्म बे अव्यमा रे, असंख्य प्रदेश समाय ॥ त्रुटक ॥ असंख्य प्रदेश समाय लोकमां, आकाश अव्य रह्यो लोकालोकमां ॥ अनंत प्रदेशी ते खंध ६ कहाय, अगुरु लघु चोथो पर्याय ॥ वंदो० ॥ ६॥ चोथो प्रव्य ते काळडेरे, श्रवस्तु रूप जेह ॥ ते मान्यो उपचारथीरे, दाखं तस गुण गेह ॥ त्रुटक० ॥ दाखं तस गुण गेह ते चार, अरूपी अचेतन अक्रिय धार ॥ नवा पुराण वर्तना लक्षण, काळ गुण ए कहे विचक्षण ॥ वंदो॥७॥ काळ पर्याय चार दाखवु रे, पेहेलो अतित अनंत ॥ श्रनागत अनंत डेरे, वर्तमान समय लहंत ॥ त्रुटक० ॥ वर्त्तमान समय लहंत अळगो, बीजो समय तेने नहीं वळग्यो ॥ श्रगुरु लघु चोथो पर्याय, काळ अव्य मांहि ते समाय ॥ वंदो० ॥ ॥ अजीव अरूपी वर्णव्यारे, चार अव्य संयोग जीव पुद्गल बाकी रह्या रे, ते दाखं उपयोग ॥ त्रुटक० ॥ ते दाखं उपयोग लगावी, त्रीजी ढाळमां ते नाव लावी ॥ १ ढाळनी इहां थर पूरणता, ज्ञान शीतळ उपयोगनी लीनता ॥ वंदो० ॥ ए॥ Gora Grassroom BaramaraGooorarthamare दुहा. अजीव अरूपी दाखीया, चार अव्य संयुक्त ॥ जीव पुद्गल बाकी रह्या, ते दाखं नली जुक्त ॥१॥ है Yeanewsnetween areas (२८५) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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