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________________ अध्यात्म यावीशी. FEAGreAGROSORTERSNGrenorms पूजा विवेके करीएजी ॥ ए. ॥ निज पर निन्नता बुद्धि , धरियेजी ।। ए०॥ शब्दयोगे सर्व नय सत्यजी ॥ ए॥१ नहीं तो चउ कहीए असत्यजी ॥ ए ॥ ४ ॥ शब्दादि तरण नय नाख्याजी ॥ ए० ॥ एतो आत्मस्वरूपमा रा ख्याजी ॥ ए७ ॥ एना संगे नैगमादि नळताजी ॥ ए० ॥ छ नहीं तो पुद्गलमां उरता, ॥ ए प्रजु० ॥ ५ ॥ चोथी नय सुधी मिथ्यात्व वाश्योजी ॥ ए ॥ शब्दमां समकित रुमो है खाश्योजी ॥ ए ॥ मुक्ति मारग शब्द नयीजी ॥ए०॥ साधन ए विण होय कहांथीजी ॥ ए० ॥ ६ ॥ स्थिरादृष्टि शब्द नये साधेजीए॥चारे दृष्टिमां मिथ्यात्व बाधजी॥ए नावशत्रुमा मिथ्यात्व मोटोजीए० एथी जीव संसारी गेटोजी ॥ए॥॥ शरधा वीपरित फुख दाताजी ए॥ एना अन्नावे जीवने शाताजी ॥ए॥ एम ज्ञान शीतळनी वाणीजी ए॥ गुरु वचन श्रवण करी जाणीजी ॥ ए० ॥ ॥ संपूर्ण ॥.. ॥ स्तवन ॥ १८ मुं॥ ॥राग बंगाली॥ अरनाथजीनजी अढारमा देव, अंतरयोगे मिलवा करं शेव ॥ साहेब सांनळो ॥ हुँ तुमने चाहुं दीनरात, न गमे मुजने बीजाथी वात ॥ साहेब सांनळो ॥१॥ तुज वचन सुणवानो प्यार, तुम संगे स्थिरता करवाई , त्यार ॥ सा ॥ तुम पासे मारे करवो रहेवास, तुं दूध बीजी सघळी लाश ॥ सा ॥२॥ तुमे मळो त्यां मुने , परमोद, रीज मोजथी करीए विनोद ॥ सा० ॥ तुम संगे ENGrowse arrorised GORIGANGO Gonorror Grammarriagregree Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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