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________________ AM DI श्री धर्म प्रवर्तन सार. तारे नामानुं घर , तुं ए पुद्गसनुं परिणमन वीर्य फोरवीने तजी दे एटले इंज्यिद्वारे श्रात्मानी चेतना परिणाम पामी , तेने पलटावीने स्वरूपे सहजन्नावे परिणमावे तो, कायाना सुख दुःखनो विनागी पण चेतन पोत न थाय अने ध्यानगत सिद्धना अव्याबाध सुखनो, अंशे नोगी थाय, वळी विशेष वीर्य स्फुरणा पामे तो आपकरणी मांगी, कर्मने हणी, अकर्मी थश्ने सिद्धि वरे. एवा साहसिक पुरुषोत्तमने श्रात्मानंदी कहीए. (७) हवे आग्मुं लक्षण गिरुळते घणा गुणवंतो एटले गंनिर पर उपकारनो कर्त्ता अपूर्व दर्शन डे जेनुं परमलाजनुं कारण एटले जे उपजव करतो आवे तेना तननो ताप दूर करे तो जे विनय पूर्वक दर्शन पामे तेनो तोताप है रहेज शेनो, वली वचनने श्रवण करे तेना मननी व्याधि 3 जे कलुषता ते नाश पामे वली मनन चितवन करे, तेने संतोष सुख प्रगटे तद्गत नावे परिणाम पामे लय पामे, १ तेने चतुरगति संसार मणनो अंत मो श्रावे अने निर्वाहै एपद पामे एम अनंतो उपकार करता मनोवांच्छित पुर वाने नावकल्पवृक्ष समान याचकनी चूख जागे तेमने गिरुढ कहीए. एटले श्ष्ट फळदाता . ते श्टना बेनेद. एक व्यवहारष्ट अने बीजु निश्चयश्ट जे व्यवहार श्ष्ट मागे तेने वैराग्यनो उपदेश करी संसार- अनित्यपणुं वली 5 असारपणुं देखामी संसार त्याग करावी दिक्षा श्रापी पंच , हे महाव्रत आदे चरणसित्तरि अने पमिलेहण आदि करण Breasingareergarh ranBGRGos Grore Groorna ORGIsraGOGA Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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