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________________ श्री घर्भ प्रपतन सार. १ नाना, माता मोटां अने दीकरी नानां एम गणाय ने एं सातमो कल्प कह्यो. हवे आठमो प्रतिक्रमण कटप ते बावीस तीर्थकरना साधु साध्वी जे अवसरे पोताने पाप लाग्युं अतिचार लाग्या छु । जाणे तेज वखते देवसि अने राइ ए बे प्रतिक्रमण करे, नहीं तो न करे, अने पेहेला बेला तीर्थे साधु साध्वी निरंतर प्रनाते राश् अने संध्याए देवसी अर्द्धमासे पाक्षिक. चारमासे चउमासि अने बार मासे संवत्सरि एम पांच ६ 5 प्रतिक्रमण करे ए आठमो कप कह्यो. हवे नवमो मास कल्प ते वावीस तीर्थकरना साधु साध्वीने मास मास प्रत्ये विहार करवानो नियम नथी. ज्यां लान देखे त्यां घणा काळ पर्यंत एक क्षेत्रे रहे अने 6 पेहेला बेला तीर्थना साधु साध्वी तो वर्षाकाले चार मास इरहे बाकी एक मास रहे एटले आठ मासना आठ अने । चोमासानो एक एम एक संवत्सरमा नव कल्पी विहार करे ए नवमो कल्प कह्यो. हवे दशमो पर्दूषण कल्प ते संवत्सरी संबंधीना पांच १ वानां अवश्य करवां ते कहे . संवत्सरी प्रतिक्रमण कर, ॥१॥ केशनो लोच करवो ॥२॥ अमनो तप करवो ॥३॥ ६) तथा ज्यां रह्या होय ते नगरमां चैत्य प्रवामी करवी ॥४॥ सर्व संघमां मांहो मांहे खमत खामणं करवां ॥५॥ इत्यादि नाव जाणवो ए दशमो कल्प कह्यो. हवे ज्ञान व्यवहार कहे जे ज्ञान कहेतां आत्मज्ञान . Panorries REMORSMOREMEMASOORoces Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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