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________________ - - . - -' - - "-:. - -'- . . .. .. -'- - "-- ... RATNAGORIERRORComm श्री धर्म प्रवर्तन सार. आहारादि चोवीसे तीर्थकरना साधु साध्वीने लेवा कल्पे नहीं ए सज्ळयातरीक कटप कह्यो. हवे चोथो राज्यपिंग कल्प ते राजाना घरनो आहारादि लेवो बावीश तीर्थकरना साधु साध्वीने कटपे.प्रथमना E, अने देखा तीर्थे लेवो न कल्पे ए राजपिंग कल्प कह्यो. हवे & पांचमो कृतिकर्म कल्प ते वांदवू त्यां श्री जैन शासनने विषे & पुरुष प्रधान धर्म प्रवर्ते जे ते कारणे साध्वी सो वर्षनी दी है क्षित होय तोपण एक दिवसना दिक्षित साधुने वांदे ए पांचमो कल्प कह्यो. हवे बठ्ठो व्रत कल्प ते बावीस तीर्थकरना साधु साध्वी दीक्षा अवसरे चार महाव्रत उचरे एटले स्त्रीने परिग्रहमां गणीए त्यारे चोथु पांच, ए बेर्नु एकज थाय ते अपेक्षाए चार महाव्रतधारी कह्या अने पेहेला लेखा तीर्थे स्त्री जूदी अने परिग्रह जूदो एम चोथा ब्रतमां स्त्रीनो त्याग अने पांचमा व्रतमां परिग्रहनो त्याग ए अपेक्षाए पांच महाव्रत उचरे. वळी पेहेला बेला तीर्थे तुं. रात्रीनो. जनव्रत मूळगुणमां गणाय अने बावीश तीर्थकरना साधु ह साध्वीने उत्तरगुणमां गणाय डे ए हो कल्प करो. 9. हवे सातमो ज्येष्ट कल्प ते पेहेला हा तीर्थे वमी दिदाना दिवसथी नाना मोटापणुं गणायडे. अने बावीस तीर्थकरना साधु साध्वीने दिवाना दिवसथी नाना मोटा पणुं गणाय डे तेमां पितापुत्र राजा प्रधान मा दीकरी & मोटाना नानान्ना इत्यादि साथे दिक्षा लेवे तो लोक रीते पिता मोटा अने पुत्र नाना, राजा मोटा अने प्रधान १ FRAGMRAGNSAHASRAGMSAGREASSASSAMSGMOS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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