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________________ om ORasraangrenorrGrooring c RANGEOGRAMMARCress श्री धर्म प्रवर्तन सार, ..................nommm य.अने ज्ञान रहित व्यवहार कहीए ते मिथ्यात्वधर्म प्रवर्तनमा डे ए व्यवहार नय कह्यो तेमां नेदज्ञान योग उतां १ समकित धर्म प्रवर्तन कहीए अने अन्नेद झान योगे निश्चय धर्म प्रवर्तन कहीए. तेनी मुक्ति कहीए. अन्नेद ज्ञान ते 2) कार्य रूप ले अने नेद ज्ञान देते कारणरूप ले.नेदज्ञानना अन्नावे जे साधन कर, तेने अकारण कहीए.. हवे कल्प व्यवहार अने ज्ञान व्यवहार ए बे नंद कहेडे एबे व्यवहार ग्राही तेज साधु एटले कल्प डे ते व्यवहारन यनो अपेक्षी अने ज्ञान ले ते निश्चयनयनो अपेक्षी जे ए बे नेद ते साधुना याचार कहीए. तेमां कल्प डे ते बाह्य आचारी ने अने ज्ञान ले ते अंतर आचारी ले तेमां कारण योगे कल्पने उखवे तो साधुपणुं जाय नहीं. अने झानने मुखवे ते वखते साधुपणुं रहे नहीं. नाश पामे.वळी कल्प डे ते याग प्रवृत्तिनो ग्राहक बे. अने ज्ञान ते उपयोग प्रवृत्तिनो ग्राहक के. वळी कल्प ले ते निमित्तकारणमा अने ज्ञान ने ते उपादानकारणमां . कल्पनी आदि नैगम नये . अने झाननी आदि शब्द नये ए बेहु नेदनो आराधक तेनेज साधु कहीए. तेमां प्रथम कट्प व्यवहारनी गवेषणा कल्पसूत्रथी दश नेदे कहे . तेमां पेहेलो अचेलक कल्प ते पेहेला अने बेला तीर्थकरना साधुने धवळ वस्त्र डे, नहीं रंगेबुं, नहीं धोएबुं जेवू सेवके आपेढुं होय तेवू तेमां सामा त्रण हाथ लांबो 5 चोळपट्टो ढींचण प्रमाणे नीचो तेना उपर कंदोरो वळी Ram Rang Br r overed SAGAROGRGaragon Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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