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श्री धमे प्रवर्तन सार. १ कारण सामग्री पामे तो पण पलटाय नहीं वळी श्रुत अ-६
ज्यास करे अने पंच महाव्रत आदरे , पण आत्म धर्मनी , यथार्थ श्रद्धाना अन्नावे समकित पामे नहीं.अने मिथ्यात्व । बोमे नहीं माटे अन्नव्य जीवो डे ते सिद्धि पद पामवाने
अयोग्य ले ते अन्नव्य जीवोनी संख्यां चोथे अनंते ने ए , नेद व्हेंच्या तेने व्हेंचण रूप व्यवहार नय कहीए. & हवे बीजो नेद "प्रवर्त्तनं वा व्यवहार" के प्रवर्तन व्य-,
वहार सद्विविध के तेना वेद शुद्धोशुद्धश्च के शुद्ध 6 व्यवहार अने अशुद्ध व्यवहार ए बे नेद कह्या. तेमां ग्रंथकारे प्रथम शुद्ध व्यवहारना नेद कह्या बे, पड़ी अशुद्ध व्यवहारना नेद कह्या डे पण इहांतो अमे पहेलां अशुद्ध व्यवहारना नेदनी विवक्षा करी पड़ी शुद्ध व्यवहारना नेद कहीशु. अशुद्ध व्यवहार ते अशुद्ध प्रवर्तन ते कहे . अशुद्धोपि द्विविध के० तेना वे नेद. सद्भूता सद्भूतनेदात् के० सद्भूत व्यवहार अने असद्भूत व्यवहार. तेमां सद्लूत व्यवहार ते, “ज्ञानादि गुण परस्परं निन्न" के ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य अने उपयोग आदि अनंता गुण आत्मामां अन्नेद नावे रह्या ले ते गुणने
आत्माथी निद पणे जिन्न गवेखे तेने अशुद्ध सद्त्त १ 0) व्यवहार कह्यो, हवे बीजो नेद असद्लूत व्यवहार ते, ,
“कषायात्मादि मनुष्योहंदेवोहं" के हु क्रोधी हुं मानी हुँ कपटी, हु लोनी, अने हुं विषयी इत्यादि. वळी हुँ ,
मनुष्य हुँ देवता इत्यादि कहे, मान, एटले जे गतिमा ६ VEALENOMORRHOMXSVIRENA
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