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________________ સ્તવન અધિકાર. RAGHIGG Seck 9 मनने तीहां रहीने पाखे ॥ म० ॥ ॥ इंद्रि निग्रह सुन्नट ? चित्त चोखुं करी, स्थीर उपयोगे तीहां फूझे बुझे । तप तीहां आवियो हाथ देखावीयो, असंयम नूमि पम्यो थरथर ध्रुजे ॥ म० ॥ ७ ॥ धर्म शुकल ध्याइए, तुरंग गति 3 पाश्ए, ध्यान ए सुन्नटोमां शान मोटो ॥ ते हणे आरत. के रोड दोय सुन्नटने, वचन ए सत्य के नहीं ए खोटो ॥ म० ॥ ए ॥ नाव संवर सुन्नट आतम ज्ञानमां, मुझे बुझे 6 अति वीर्य दाखे ॥ते हणे आश्रव शुन्न अशुनने, निरमळ 6 चेतनारूप चाखे ॥ म० ॥ १० ॥ निर्जरानाव सुन्नट बळ गाजतो, राजतो ज्ञानमां शुद्ध नावे ॥ पूर्व बंध कापतो है अजीवने आपतो, मुक्ति पंथ चालतो मंगल गावे ॥ म० ॥ ११॥ अनुन्नव ज्ञान सुन्नट निज रूपमां, मुझे बुझे निरजय डे मनमां ॥ वीर्य अधिको धरे जमरूप तीहां मरे, निर्मळता करे मूळ रूपमां ॥ म० ॥ १२ ॥ सुन्नटो इत्यादि र अधिक बळे फूझता, सिंह नाद करता ए धोमे ॥ मोह १ तीहां नागी पुंठ देखावीयो, ज्ञान शीतळ फरी युद्ध मां ॥ म० ॥ १३॥ ढाल ॥ ३ ॥जी॥ करजोमी कहे कामनी ललना ॥ ए देशी. ॥ मद्विनाथने मोह आविया, ललना, लालाहो रणनू. मिये कुम्वा काज ॥ ए युद्ध सारे ललना ॥ द्वेष गजेंद्र M) उपरे ललना, लालाहो बेठगे जे मोह राज्य ॥ ए० ॥१॥ ए आंकणी॥ राग केशरी पुत्र साथे लक्ष ललना, लालाहो १ HisangmainExersarera GOOGGREGreeGGreena Grenoragarior Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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