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________________ Grores BAGRAGre KNORGASMICROGRana तपन भधि२. १ जण गावे ॥ हवे आगळ जे कांइ थावे, ज्ञान शीतळ , कहेशे ते नावे ॥ १३ ॥ ॥ ढाळ २ जी॥ ॥ देशी कमखानी ॥ ___ मशिनाथ जिनेंद्र देव उंगणीसमा, अतुळी वळ मुके है ई जेम उमे फुदो ॥ ज्ञान गुण निर्मलो, स्वरूपे प्रकाशीयो, 6 जासियो जीव पुद्गल जूदो ॥ मलिनाथ जिनें० ॥ ए. श्रांकणी ॥ गाथा ॥ १॥ शुद्ध श्रद्धा करी, विकलता पर-6 हरी, प्रगट समकित जीम गयणे चंदो ॥ नागीयो लागीयो, खम्ग चउधारनो, मिथ्यात्व वंश कीधो निकंदो ॥ म० ॥ हूँ ॥२॥ उपशम सुन्नट तव समकित जोमी, मोहनो स्थन रण पामे हेगे ॥ कषाय चउ चोकमी सोळ दबावीया, तीहां हुवो आतमा शीतळ जेगे ॥ म० ॥ ३॥ शियळ सुन्नट तिहां खेलतो मेलतो, कंदर्प चोरने बाण तीखो ॥ ते मुवो त्यां पमयो नूमिपर रमवमे, लविजनो साधना एम शीखो ॥ म० ॥ ४॥ वैराग सुलट तीहां मुजतो वुझतो, शत्रु सनमुख आगळ श्रावे ॥ ज्ञान कटार मारे बहु बळ करी, आशादि षट तीहां अंत थावे ॥ म ॥॥ ५ ॥ नाव श्रुत झान सुनट बळ गाजतो ॥ दीपे दीनकर जेम ) पूर्व दीशि ॥ ए हणे ते कहुं नीमादिक सुन्नटने ॥ जाखे एम जगगुरु ए वचन वीशी ॥ मसि० ॥ ६ ॥ क्षय उपशम जिहां प्रगट चेतन तीहां, विस्तारे चेतना हे रुप दाखे ॥ वीर्य तीहां आवीयो, बळ करी मारीयो, चपळ HinmeWScornerBOAN Darporner GNGIG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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