SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ GORGEORGAR GROrd RAMESH RABIRENDRAGirelims सज्झाय ॥ २ ॥ जी ॥ चेतनज्ञाननी । । ॥चेतनजी बारणे मत जावोरे ॥ ए देशी॥ चेतनजी ज्ञान स्वरूपने धारोर, तुमे पर उपयोग ई निवारो ॥ चेतनजी ज्ञान स्वरूपने धारोरे ॥ ए आंकणी ॥ 6 पूर्व कर्म जनित दश प्राणरे ॥ ते परवस्तु प्रमाणरे ॥ तेना , संगे उपयोग नाण ॥ चेतनजी० ॥ १॥ ए उपयोग चेतन 6 है वस्तुरे ॥ परसंगे जमता लहंतुरे ॥ रागद्वेष अज्ञान कहंतु ॥ चेतनजी० ॥२॥ ए नूल अनादिनी तुजमां रे, तेथी कर्ता जोगता पुदगळमारे ॥ बांधे कर्म वर्गणा चेतनमां ॥ चेतनजी० ॥ ३ ॥ तेथी चगति नटकण लाग्यो रे, मूळरूप कीहां नहीं जाग्यारे ॥ सुकृत साधन सब ताग्यो । ॥चेतनजी॥४॥ तेथी मुखीयो अनादि संसारी रे॥ अहं ममव करी जूल नारीरे ॥ हवे गश् बाजी व्यो सुधारी ॥ चेतनजी० ॥ ५॥ सदगुरूनी सेवा करीयेर ॥ करी विनय श्रवण अनुसरोयेरे ॥ तेथी ज्ञान ऋद्धिने वरीये॥ चेतनजी. ॥ ६ ॥ जे अवसर चेतन ज्ञानीरे ॥ पूर्व रीत जुए स्थिर ध्यानीरे ॥ परसंगे अनंती हानी ॥ चेतनजी० ॥ ७॥ ज्ञान वीर्य एकता कीधीरे ॥ पुदगल परिणमन तजी दीधीरे ॥ उपयोग गुणस्वरूपमां लीधी ॥ चेतनजी० ॥ ७॥ शुद्ध अनुन्नवी आतम धर्मी रे, शक्ति नाव व्यक्ति परिणमी रे॥ पूज्य अरिहंत थया शीवरंमी ॥ चेतनजी० ॥ ए ॥ गुण 5 घाति चनो विनाशरे ॥ तीहां अनंत धर्म अवकाशरे ॥ हे कीधो क्षायक नावमा वास ॥ चेतनजी० ॥ १० ॥ आयुष ७ ( २७०) Granarendrammarkmroo reORGAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy