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________________ 8 સ્તવન અધિકાર. स यावे, हांहां रे देव असंख्य बोलावे ॥ हांहां रे सूर्य पूरमां तेावे, हांहां रे सर्व मंगलिक गावे || हांहांरे घणां वाजां वजावे, ढांढांरे तीहां थाक न आवे || नेमि निरागी संयम लीये रंग अंतर मांही ॥ २ ॥ तीर्थोदक वर औषधि, लावे नीज नीज रंगे ॥ श्रव जाति कळश आउने, एक सहस मन चंगे || हांहां रे एक सहस मन चंगे ॥ हांहां रे जळ जरे सौ संगे ॥ हांहांरे लावी उलट अंगे ॥ हांहां रे स्थिर वृत्ति एकंगे ॥ हांहां रे घणी रीऊ उमंगे, हांहां रे · प्रमोद ए जंगे ॥ नेमि निरागी० ॥ ३ ॥ समुद्रविजय पेहेलो करे, पी सूरजिषेक ॥ समकित शुद्ध होवे तीहां वे श्रद्धा विवेक ॥ हांहां रे यावे श्री श्रद्धा विवेक, हांहां रे शुद्ध निज गुण टेक ॥ हांहां रे नहीं परगुण नेक, दांहां रे ध्यान जक्तिनुं एक ॥ हांहां रे तीहां धर्म अनेक, ढांढारे नव समज दरेक ॥ नेमि० ॥ ४ ॥ उत्तरकुरु शिविका बेसे नेमि निरागी, एकसत या उपागता देवनर वमनागी हांहां रे देवनर वमनागी, हांहां रे राजी थइ लीये मार्गी ॥ हांहांरे जतिमां लय लागी, हांहांरे घणा गुण नीरागी ॥ हांहां रे चाले पंथे सोनागी, हांहां रे माने पुन्याइ जागी ॥ | ॥ ५ ॥ देव देवी नरनारीनी, दृष्टि बे प्रभु सामी ॥ तारतार तुंहीं साहिबा, वश्ये अंतरजामि ॥ ढांढां रे वश्ये अंतरजामि, हांहां रे तुंही वे शीवगामी, हांहां रे रुपी धामी ॥ हांहांरे उपयोग गुण रामी, ढांढांरे उपाधि सर्व वामी ॥ हांहां रे तुहीं जगगुरु स्वामी ॥ नेमि निरागी ( २६० ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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