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________________ સ્તવન અધિકાર, GGE narekarenormore वैराग नावे ॥ मुळरूप जुए निज गुण स्थिर उपयोग अनु६ नव प्रगटावे ॥ ए आंकणी ॥ ५ ॥ श्हां वैराग रंग वृद्धि घटमां, रथ वाल्यो तोरणथी ऊटपटमां ॥ धिक्कार हो संसार कारजमां, ॥ आज ज्ञान० ॥ मूळ ॥६॥ तव राजुल दुःख ज्वाळा लागी, विलाप करे हुँ निरनागी ॥ समजाव्या नहीं समजे रागी ॥ आजण ॥ मूळ ॥ ७॥ घेर आवी वरसी दान दीये, नित्य एक क्रोम आठ लाख नव्य लीये ॥ हाथ धरतां न धरे लाज हीये ॥ आज० ॥मूळ०॥ ७ ॥ तीहां कीर्ति जश जग गाजी, करुणा सागर जीन राजी ॥ दान नव्यने देश दुःख नाजी ॥आज झान॥ मूळ० ॥ ए ॥ हवे दिदा उच्छवने दाखशुं, ज्ञान शीतळ घटमां राखरां ॥ जीन नक्ति करुं गुण रागशुं॥आजज्ञान। ॥ मूळ०॥ १०॥ ॥ ढाळ ॥ ३ ॥ जी ॥ राग बिलावर ॥ ॥ जगत प्रजु आगळ नवी वर अक्षत धरीये । ए देशी॥ नेमि निरागी संयम लीये, रंग अंतर मांहि नेद ज्ञान चित्त वासीयो, अनुन्नव स्थिर ज्यांहि हाहां रे ॥ अनुलव स्थिर ज्यांही, हांहारे समकित शुद्ध त्यांही ॥ हाहां रे 8 तीहां मिथ्यात्व नाही, हांहां रे लोग चिदघन मांही॥ हांहां रे॥ उदवेग नहीं क्यांही,हांहां रे एतो उत्सर्ग सांही नेमी नीरागी संयम लीये,रंग अंतर मांहगए आंकणी गाथार॥ ॥उच्छव महोच्छव अति घणो, देव नर करे नावे ॥ समुड विजय सर्व जादवा, इंद्र चोस आवे ॥ हांहारे इंध चोFacrosoriorrororani GrenoNGRAGAR GAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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