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श्री धर्म प्रवर्तन सा२. जाणवी ऐ गुणगणुं आयुषना मे डोमी योगरोध करी , ६ सैलेसिकरणनावे अयोगी चउदमा गुणगणे आवे तीहां 9 उच्छिन्न क्रियानि वृत्ति चोथो पायो शुक्लध्याननो ध्याता 5
थका ए गुणगणाना अंते मनुष्य नव गतिने डोमी कार्मण वर्गणा रहित थ पोतानी काया प्रमाण अवगाहनामांथी
त्रीजो नाग पोलारनो घटामी बे नाग प्रमाण श्रात्मप्रदे& शनो निविरुघन करी एक समय काळ माने सम श्रेणीए.
बीजा आकाशप्रदेसने अणफरसते लोकाग्रन्नागे सादि अनंतनागे शिद्ध थया. (१) हवे सिद्ध नगवाननी स्तुति करे :
सवैया एकतीसा. अरुपी अविनाशी निरंजन, ज्यूंआकाशी अनंत गुणनी राशी; अकेक परदेशे है असंख्य प्रदेसे एम उपयोगे व्यक्ति तेम स्वन्नाव भोगीखेम सदा परमानंद है अचळ अलख सि६ अगम विमळ बुद्ध निराकार नविकार गुण गुणमां रदै परगुणे नही कदा निज गुणे रहे सदा पर्याय ते फोरे तदा व्ये स्थिर सिधि है॥॥ ___ अर्थः-श्ररुपी कहेता जीहां वर्ण, रस, गंध फरस 9 अने संस्थान नथी. ए वस्तु पुद्गळमां साधे तेथी सिद्ध हे नगवान रहित, श्रात्मस्वरूपी , माटे अरूपी कहीए; Peace design
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