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श्री धर्म प्रवर्तन सार, ७ देवनी आनुपुरवीरे ॥ मनुष्यद्रिके कहीज्यु कहायरे ॥ ,
प्राणीए० ॥७॥ पंचेंड़ी जाति उदय थकीरे ॥ पामे सही १ ६) इंशीयो पांच ॥ देव मनुष्यादी गती प्रत्येरे ॥ उदय बते न है
लागे खांचरे ॥ प्राणीए० ॥७॥ उदारीक शरीरनोरे ॥ उदय होय जब सार ॥ उदारीक आहार लेश्नरे ॥ बांधे शरीर पीझ नही वाररे ॥ प्राणीए० ॥ ए ॥ उदारीक अंगो पांग उदय थकीरे ॥ बांधे आठ अंग उपांग ॥ अंगुली रे खानख केस एरे॥इत्यादि कह्यां अंगोपांगरे ॥प्राणीए० ॥ १० ॥ वैक्रीय शरीरनोरे ॥ अंगोपांग उदय थाय ॥ ते बांधे
उदारीकज्युरे, एम नावो ए सरखो न्यायरे ॥ प्राणीए० ॥ 3 ११॥ वैक्रीयना दोय नेदरे ॥ औपपाति लब्धि एम ॥
औपपाती देव नर्कमारे ॥ लब्धि मनुष्य तिर्यंच तेमरे॥ प्राणीए० ॥१॥ वैक्रियादि लब्धि एरे॥ करे मनुष्यादी रुप अनेक ॥ प्रत्येक रूपे नीजात्मनारे ॥ प्रदेश असंख्यनी टेकरे ॥ प्राणीए० ॥ १३ ॥ ए प्रदेश लब्धिवंतनारे ॥ काढे ते मुळ कायाथी सार ॥ अनेक रूपे एक आतमारे॥न त्रुटे प्रदेश श्रेणी फाररे॥प्राणीए०१४ाए रूपथी लढतां अन्य
सुरे॥लागे एकने शस्त्र प्रहार ॥ तेनुं फुःख जे प्रगटेरे ॥ ६ ते अनुन्नव सर्वने धाररे ॥ प्राणीए० ॥ १५ ॥ असंख्याता ) प्रदेश विनारे ॥ कायजोग न बंधाय ॥ रुप विखरे श्रावी
मिलेरे ॥ मुळ कायाये श्रेणी समायरे ॥ प्राणीए० ॥ १६ ॥ 9 आहारक शरीर उदय थकीरे ॥ आहारक दळ ग्रहाय ॥ है शरीरपणे परिणमावीनेर ॥ ममा हाथनी बांधे ए कायरे ॥
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