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________________ RAMRORGERGORANGERS श्री गु३तिनो रास. नेदे धर्म अनंतो, आनंद स्हेर ते पाय ॥ हुकम० ॥ ५ ॥ उकुराश् शुद्ध चेतन तदरुपे, तीहां चेतन- राज्य रे ॥ ए १ १ राज्यना नोगी मुनिश्वर, राज मळे सरे काज ॥ हुकम०॥ ॥ १० ॥ मुनिश्वर मोटा चेतनरूपे, परमानंद स्वरूपरे ॥ १ 5 अविनाशी पद पूरण तेहy, ज्ञान शीतळ निजलूप है ॥ हुकम० ॥११॥ namaraGR GORAGAR Break तदरूप लीन योगमां, अनुन्नव रमणि थाय ॥ उपाधि अळगी टळे, त्यां चेतन राज्य कहाय ॥१॥ ॥ ढाळ ॥ १२ मी ।। ॥ नवि तुमे वंदो रे सूरिश्वर गच्छराया ॥ए देशी॥ नवि तुमे वंदोरे हुकम मुनि गुणराया ॥ अनंत गुण जरीयो ने चेतन, तेह स्वरूपने पाया ॥ नवि तुमे० ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ अनंत गुणमां मुख्य ज्ञान दे, ए विण जमता दाखी ॥ ज्ञान दीपक उपयोग अनुन्नव शुद्ध, तीहां चेतन बुद्धि राखी ॥ नवि० ॥२॥ ज्ञान शक्ति चेतन निश्राये, तीहां समकित गण पामे॥ ते ज्ञान झानमां गणीए, बाकी अज्ञान नामे ॥ नवि० ॥ ३॥ सम्यक ज्ञानने सम्यक दर्शन, दोय मित्र संग प्यारो ॥ १ अनंत गुण रत्ननी पेढी, जुवे ज्ञान मनोहारो ॥ नवि० ॥ ४ ॥ गुण पर्याय स्वन्नाव अनंता, लक्षण अनंतां दाख्यां ॥ १ ते अनंत व्यक्ति निज धर्मे अनंत धर्म ज्ञाने चाख्यां ॥ ६ नवि० ॥ ५॥ अनंतानंद व्हेर अनुनवमां, उपयोग स्थिर १ __( 3१२) HIBGBOSSIBIGBOSSGNB Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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