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________________ HIRGARBookGRomarwarenesi सआय अधि:२. . ... ......। 9 दृष्टि नीची करे कुप खामे, अहि च्यार अजगर एक मुख । फामे ॥ जय लाग्यो उरध मुख चीस पामे ॥संसार० ॥३॥ 9) कापे मुषक दो वमवार जोवे, श्याम उज्जळ वर्ण जीवित , खोवे, वम पामण गज गर्जित होवे, ॥ संसार० ॥ ४ ॥१ & वम कंपे उन्नो स्थिर खमे, मधपूमे बेली त्यां मखीयां है ई उमे ॥ अंगे वळगे ते पुःखथी रमे ॥ संसार वने ॥५॥ ए मधपूमो तीहां फाटीयो, मध करे पमे बिंदु नाके लीयो॥ है चाटी स्वाद लहंतां दुःखटळीयो॥ संसार वने ॥६॥ एणे समे गगन विमानमां, विद्याधर पत्नी आणंदमां ॥ बेसी जावे इच्छीत स्थानमां, संसारवने ॥ ७॥ एणे दीगे कूपे जीव दुखीयो, कहे विद्याधरी काढी करो सुखीयों, एने 3 लावो यहां ए न रहे नूखियो, संसारवने ॥ ॥ कहे विद्याधर तु सुण प्यारी, ए वचन न माने हितकारी ॥ दुर जातां काळदेप नहीं सारी, संसार वने ॥ए ॥ पुनरपि बोले तिहां कने, विद्याधर उतरे स्थिर मने ॥ कहे श्रावी बेसो लाइ विमाने, ॥ संसारवने ॥ १० ॥ ए वचन न माने विकळ जारी, कहे बिंदु लश् आईं मन गरी, उंचुं जुए ए मधपुझे मुख धारी, संसार वनः ॥ ११ ॥ एम पुनरपि बिंदु थावे, लइ चाटे स्वादें मन नावे ॥ नोकळे १ नहीं दुख जुली जावे ॥ संसारवने ॥ १२ ॥ एने मकी । विद्याधर जावे, कह्यो नय उपनय दाखं नावे ॥ तीहां ज्ञान शीतळ श्रानंद पावे ॥ संसारवने ॥ १३ ॥ HEREIGNBAGraord GranardartiGradAGreGra Grg ram Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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