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________________ ResorRISORREARRAGERAGas चतुर ॥ ३५ ॥ श्रात्म असंख्य प्रदेशनो, निवम घन दोय नागे थाय रे ॥ एक नाग पोलाणनो घटे, बुटयुं 9) शरीर तेहथी गणाय रे ॥ चतुर० ॥ ३६ ॥ ए घन सिद्धनीह अवगाहना, लोक शिखर करे वास रे ॥ समश्रेणीये एक समयमां, ज्योतमां ज्योतनो समास रे ॥ चतुर ॥ ३७ ॥ ६ 0 रुपातित सिद्ध महरायने, सादि अनंत नंग कहिये रे॥ सिद्ध गति अनादि अनंत , एसी अक्षय पदवी सहीये 6 रे॥ चतुर० ॥ ३० ॥ अकृत अनुन्नववंत बे, अनंत केवळ 6 नाण दर्शन रे ॥ चारित्र वीर्य अनंत बे, ए प्रत्यक्ष प्रमाणे मानुं धन्न रे ॥ चतुर० ॥३ए ॥ सोहि सनाथ व्यक्ति धर्मना, अव्याबाध सुखवंत रे॥ अलख निरंजन अचळ ए, परमानंद नोगी महंत रे ॥ चतुर ॥ ४० ॥ एवंनूत। नय पूर्णता, सनाथ विचारे गवेषी रे ॥ ज्ञान शीतळ कहे पामीये, शुद्धात्म अनुन्नव पेखी रे ॥ चतुर० ॥ ४१ ॥ ॥ सजाय ॥ ६ ठी ॥ मधु विंदवानी ॥ एक दिवस विषे नेमि कुंवर निज मित्र संघातें श्रावे ॥ ॥ए देशी ॥ संसार वने चउगति नव ब्रमण जीवने पुःख मोटुं॥ अनुनय विना, धर्म साधन करीए ते सर्वे बोटुं ॥ ए - कणी ॥ मधु बिंदु दृष्टांत चित्त धरीये, अघोर वन चन गतिमां फरीये, तीहां वनगज मारे ते मरीये, संसार वनेक ॐ ॥१॥ जीव आगळ गज पाठळ दोमे, वमनीचे कूप दीगे हे दोमे ॥ तेमां लटके वनवा दो जोमे, ॥ संसार० ॥२॥ Sangrammaloongare al GrammaNGRama SARGAMRAGARRIGARAGR SAGARAGAGARGIGRANGGARAR Doooo Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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