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________________ REGIGRORGARRORGREA श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ६॥ रंगीला० ॥ ए० ॥ ६ ॥ परनावे धर्म नवि रहे रे मिता, ६ पामेबुं क्षणमां विनाश ॥ धर्मघाति परन्नावनेरे मिता, 9 तजी करो स्वन्नावे वासरे ॥ रंगीला० ॥ ए० ॥ ॥ शुद्ध एकता अचलतारे मिता, अकृत्य चिंतक नाव ॥ परानुयायी हां टल्योरे मिता, अन्नेददानी हुवा रावरे॥रंगीला है ॥ ए० ॥ ॥नेद ज्ञान कारण कयुरे मिता, टळतां कायता पाय ॥ केवळनाण दर्शण लहेरे मिता, ए शुद्ध सदलूत थायरे ॥ रंगीला० ॥ ए ॥ ए ॥ पर्याय अव्य एकाग्रतारे मिता, व्यक्ति अनंती निन्न ॥ अनिन्न रूपे तिहां ३ सहीरे मिता, ए स्याहाद धर्म चिन्हरे ॥ रंगीला० ॥ ए. ॥ १० ॥ एम ज्ञानयोग आराधीयेरे मिता, नेद अन्नेद विरचार ॥ ज्ञान शीतल सिद्धिवरेरे मिता, लहे अव्यावाध हितकाररे ॥ रंगीला० ॥ ए० ॥ ११ ॥ GARGPORGreenience ॥ इति ज्ञानपद पूजा ७ मी ॥ Grari GORAGaronorror GrenoNRG पूजा ॥ ८ मी ॥ दुहा ॥ जे चारित्र शरण करे, ते निर्नय पद पाय ॥ नव नव नाटक नवी करे, मोहादि कर्म क्ष्य थाय ॥१॥ चारित्र गुण अंतर विषे, अनुन्नव ज्ञान संयोग ॥ हे स्थिर उपयोग शुद्धता, तीहां संयमश्री लोग ॥ संयमश्री संगे रहे, चारित्र रायनी पास ॥ हे प्रमोदित अळगी नही, कार्य करे थर दास ॥३॥ Hasiates Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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