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________________ PROSAGAR GARAMINISTRAGRAT श्री धर्म प्रवर्तन सार. ६ मानी जे जेणे तेनो सदाय काळ नयमा जाय; कारण के पर६ वस्तुनो स्वन्नाव विनाशी जे अने ते पुन्यजोगे मळी प्राप्त ६ थर ते उतां पुन्ये स्थिर थश्ने रहे पण पापोदय जोगे तेनी है हानी थाय, रखोपु करतां पण न रहे त्यारे पोतानी मानवावाळा प्राणी उद्वेग पामे. संताप करे, दिलगीरी करे, पण एम न समजे के संजोगनी पाबळ विजोगनो नय रह्यो बे, सुखनी पाडळ फुःखनो नय रह्यो ; आ संसार एज नयनुं कारण पुःख, कारण . माटे संसारी वस्तुथी विरक्तता नावीए, ए उपाधि संजोगने पर मानीए एम न समजे अने रखो' करतां थकां आखो नव नयमांने न यमां कहामे, तेहने नवानिनंदी कहीए. (ए) 3 हवे दशमुं लक्षण कपट एटले मुखशुं मीग अने हृदये दुष्ट, मुखथी बोले ते जु, अने मनथी चिंतवे ते जुएं, कायानी चेष्टा जुदी, एम कपट, फंद, माया एटले मच्छी लोको जळमां जाळ नाखे, तेथी पण आ कपटजाळ अती बुरी . कारण के एतो तिर्यंच, जळचर जीवो जळमां विनोद, क्रिमा करता एवा तेम पशुने जाळमां फसावी दे , अने आ कपटी तो वगर जाळे, माह्या चतुर मनुष्यने वातनी वातमा फसावे , माटे अति बुरो, अविश्वासन स्थानक एवो कपटी तेने नवान्निनंदी कहीए. (१०) ४ हवे अगीयारमुं लक्षण अज्ञानी मिथ्यात्वी एटले निजपर बुद्धि जीहां सुधी थइ नथी अने निजपरनो नेद नास्यो नथी, जमसत्ता, चेतनसत्ता, जुदी जुदी जाणी नथी Handsogration News Sonomind SoSorror GornerGEGrdGordosongs Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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