SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ GAR BARSR GIRRIGARG श्री धर्म प्रवर्तन सा२. १ आपे घणुं सुख नहीं एक अणुं, क्लेश करी काळ त्यां नि र्गमे ए ॥ पद्म ॥ ५॥ तेथी मुढ आंधळा सत्य सूळे नहीं १ ६) हेम बंधन त्रुटे नहीं ए ॥ मोह पहीनी आज्ञा तुमे मानता, , ६ वेरी ए चारित्र रायनो ए ॥ पद्म०॥ ६॥एथी बुटया विना , & सुख आवे नहीं, अनंतकाळे ए मूके नहीं ए ॥ नव नवा . है वेषे नाटक नचावतो, निरदय हृदय नीवुर ए॥ पद्म & ॥ ७ ॥ हुँ पण ए रीते तुज सम रखमीन, विकल थश्ने सं सार मांहे ॥ एम करतां मन्या सदगुरु देवता, तेणे चक्षुमां 6 अंजन कीयो ए ॥ पद्म ॥ ७ ॥ तेथी मने सूझीलं वीर्य तीहां फोरव्यु, पूंच दीधी में मोह रायने ए॥ चारित्र राय स्मरण कीयो ततदणे, ते मुज स्वरूपमां आवीयो ए॥ पद्म ॥ ए ॥ त्यां सह निरमळो ज्ञान अनुन्नव नों, स्नाने विन्नाव मळ बुटीन ए ॥ शुद्ध स्वन्नाव तद्रूप परमातमा, शीव पंथे सेजमां हुं चमयो ए ॥ पद्म ॥ १० ॥ एम तुमे करो वीर्य त्यां फोरवो, एह उपदेशने सद्दहो ए ॥ तेथी। र तुमे पामशो शाश्वत सुखने, झान शीतळ सो सिद्धातमाए ॥ पद्मः ॥ ११ ॥ संपूर्ण.॥ स्तवन ॥ ७ मुं॥ | मन मधुकर मोही रह्यो । ए देशी॥ सुपार्श्व जिनवर सातमा, पृथ्वी माताना जायारे ॥ कंचन वरणे दीपता, बसो धनुष्यमान कायारे ॥ सुपार्श्व 9 जिनवर सातमा ॥ ए श्रांकणी ॥गाथा॥१॥ वीस लाख ६ पूर्वY आउखु, अंतरदृष्टि वैरागीरे ॥ बाह्य रंग पतंगनो, ६ SAGAGRaexe Mmss MAGAGROGRAPAGAGROGR GAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy