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________________ ROMOREGALS FRIENBARAGRATARRASSAGARAGang बे, उपयोग तिक्ष्ण बे, शहां एक पोताना अव्यनो विचार ६ नेद अपेक्षाए बे, परपक्षनो ग्राहक नथी, पोतानुं मुख स्वरूप प्रत्यक्ष रीते, स्यादादपदनी ऐक्यतापणे स्वन्नाव वृत्तिए अनुन्नवे , ते अकृत्रिम नेद ज्ञान योग साधननो ॐ बीजो नेद ते कह्यो, शहां समजुनो तर्क थशे जे, केवळ झाननो अनुलव ते अकृत्रिम डे, बाकीनो अनुन्नव ते & कृतिम कहेवाय. कारण के अनुक्रमे अनुन्नव थाय तेनो उत्तर. जे केवळझान ले ते दायक नावनुं निरावरण, आव 6 रण रहित बे.ते सर्वथी अकृत्रिम अनुनब करे, अने श्रेणिगते ॐ नेदझान डे ते कृत्रिम कयुं, परंतु देशथी अकृत्रिम , कारण के चेतन पोताना स्वन्नावे थयो त्यांशाननो अरूपी विषय डे, वळी सहजन्नावे पर्याय धर्मनी शुद्ध प्रवृत्ति बे, ते पुरूषने अशुनोदय जोगे कदाच कोई घाणीमां घालीने पीले, अथवा खाल उतारे, अथवा माथे अग्नि सींचे, इत्यादि घणुं कष्ट करे, यावत् प्राण रहित करे तोपण पोताना स्व१ रूपथी चूके नहि. अने जे दुःख वेदे नहि तेनो अनुनय ते अकृत्रिम जाणवो. ए नेदशान साधनयोगनो वीजी नेद ते कह्यो. हवे अन्नेद ज्ञानयोग ते दशमा गुणगणाना अंते एटले गोमतां बारमा गुणगणे आवे, तेमां अन्नदे पद चिंतवे, ते गुणपर्यायमय आत्मा, एटले ज्ञानादि गुण आत्मा थकी जुदा नथी, एकत्व , शहां नेदनो बेद थयो, असत्य कल्पना टळी शान, दर्शन, चारित्र तेहीज आत्मा, एटले कंचननु नारेपणुं,पिळाशपणुं,चिकाशपणुं ते कांश कंच. (१००) Doosreasons MAHIMA RAGRAGOLGAGAR GAR DeOROM Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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