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________________ चैत्यवहन अघिR. RSeareraGore GGER GRGA Green Gram GABRarat हे गाया गायारे वर्तमान जीन चउवीस गाया ॥ निज 6 , स्वनावे अनुन्नव करवा, उपयोग स्थिरजमाया। तीहांचेतन . है रूप जिनरूप अनोपम, तेने ध्यातां परमोद पाया रे॥ वर्त्त& मान जीन चवीस गाया ॥ गाया गाया रे, ज्ञान पायारे, 6 इतीहां जीव स्वरूप उळखाया॥ ए श्रांकणी ॥ गाथा ॥ १ ॥ ए साधन सिद्ध पदनुं साचुं, एवीण सर्वे काचुं. ॥ मिथ्यात्व हणतां समकित आवे, ते नावे घणुं राचुं रे ॥ वर्तः ॥२॥ स्तुति करी गुण रागे करीने, तीहां आणंद हरख सवाया ॥ चढतानावे स्तवन कीयां, अनुन्नवगम्य अर्थ रचाया रे ॥ वर्तः ॥ ३॥ उगणीसें उगणपचास साले, प्रथम अषाम गुरुबारे। पूरण चोवीसी श्रमावाश्यायें, कीधी अल्प बुद्धि अनुसारेरे ॥ वर्तः ॥४॥ आज मनोरथ पूरण मारा, जीन मुण नक्तियें गाया ॥ प्रमोद लावना रुमी नावी, ज्ञान शीतळ शुद्धता पाया रे ॥वर्त॥५॥ संपूर्ण.॥ सर्व गाथार? इति चोवीशी समाप्त. .. अथ चैत्यवंदन अधिकार. ॥ चैत्यवंदन ॥ १ ॥ लं॥ 5. ॥श्री सिद्धाचल सिद्ध क्षेत्र ॥ ए देशी॥ .. प्रणमी श्री गुरु रायने, हुकम आशा ग्रही जे॥ अव्य 5 पर्यायने जाणवा, नेदज्ञान घट लीजे ॥१॥ अव्य अवि-१ हे चळ रूप में, ध्रुवता पमविध जेह ॥ गुणपर्याय अनेदता, है ARMERSEASON reORGAROMANOOGY Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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