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________________ GROGre are श्री धर्म प्रवर्तन सार. ज्ञाननोजाणवापणे, दर्शननो देखवापणे, चारित्रनो स्थिरता. पणे, वीर्यनो स्फुरणाशक्तिए एम अनंतागुण पोतपोताना १ स्वन्नाव धर्मे वर्ते पण एक बीजामा प्रवर्ते नही. तेने सि- है द्धांती स्थिर कहेडे. मग्न कहे वली ए पुरुषोने अव्याबाध सुखनो अंश प्रगट थयो ! ध्यानगत परमानंदनी सहेरमां मग्न डे ए सुखनुं वर्णन सर्वज्ञ प्रत्यक्ष हजारो जीव्हाथी ६ ॐ कहेवाने पोताना श्रायुष्यनी पूर्णताए पण अशक्त ने एम महोपाध्याय यशोविजयजी ज्ञानसार ग्रंथे बीजा मग्नाष्टके 6 कहे . माटे चतुर्गति ब्रमण टाली जन्म, जरा श्रने मरणना पुःखथी रहित थ अजरामर मोक्षपदे अव्या बाध सुख पामवाने एक अद्वितीय अनुन्नवज्ञान एज का ६रण . तेने पाम्यां आस्मानंदी कहीए. (११) कथु । अनुन्नवाष्टके. श्लोक. संध्येव दिनरात्रीभ्यां केवलश्रुत बुधैरनुलवो दृष्टः केवलार्कारुणोदयः ॥१॥ व्यापारः सर्वशास्त्राणाम् दिक् प्रदर्शनमेव दि पारं तु प्रापयत्ये कोऽनुनवो नव वारिधेः ॥२॥ अतीन्यिं परब्रह्म विशुशानुनवं विना ॥ शास्त्रयुक्ति शतेनापि न गम्यं यद्बुधाजगुः ॥३॥ मनताष्टके. ६ प्रत्याहृत्ये ज्यिव्यूहं समाधाय मनोनिजम् ॥ PRACEBOGPressesGAIN HomemaraGroGeogressorrorecord Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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