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________________ RANGBROSSIBRARMSGARG श्री धर्म प्रवर्तन सार. ॥ २५ ॥ संज्वलन कषाय पाप चोकमी उदय आवे॥तीहां दायक चारित्र नावे॥ अशुद्ध परिणति न जावे ॥वीतराग १ न कहाय ॥ घाती० ॥ २६ ॥ नव नोकषाय पाप उदे प्रत्ये। के आवे ॥ तीहां कषाय प्रगट थावे ॥ कषायर्नु ए कारण कहावे ॥ सवे संसार मुळ ॥ घाती० ॥ २७ ॥ ए मोहनी कर्म उदय कयुं चोथु कहीए ॥ अंतराय कर्म उदय लहीए ॥ जीव गुण सब्धि हाणी तहीए ॥ दानादीकनी थाय ॥ घाती० ॥ २७ ॥ ज्ञान दर्शनोपयोग दान प्रवृत्ति न पावे॥ तीहां श्रद्धा चरण लान नावे ॥ लोग उपनोगोपयोग अउनावे ॥ वीर्य फुरणा न होय ॥ घाती० ॥ए ॥ घाती चौ । कर्मबंध पापनो उदय नाष्यो ॥ गुण घात पुर्वक कही दाष्यो । पहेलो कर्मग्रंथपुरे साख्यो ॥ नवी समजो एह ॥ घाती० ॥ ३० ॥ पुर्वबंध पाप नेद पंच चालीए दाख्या ॥ उदयमां तेना सप्त चाली नाख्या ॥ अघाति सप्त तीस बाकी राख्या ॥ आगे कही\ एह ॥ घाती० ॥ ३१॥ १ घाती कर्म वलीयो तीहां चेतन गलीयो॥ नवोनव नमतां ६ ःख मलीयो ॥ ज्ञान शीतल गुण एणे हणीयो ॥ ए अनादी संबंध ॥ घाती० ॥ ३५ ॥ ढाल सत्तरमी संपूर्ण ॥ ॥ढाल अढारमी ।। ॥ळगमी आदीनाथनीरे ॥ ए देशी ॥ अघाती पूर्वबंधनीरे ॥ अशुन्न प्रकृति जेहलाल॥ तेनो ॐ उदय पाप कीजीएरे ॥ नेद सप्त त्रीस तेह लाल ॥ पापो हे दय नवी सांजलोरे ॥ ए आंकणी ॥१॥ वेदनी अशाता Narenessurer DRY YRICORogre@re@roProEDEORA GGEDAGOGOOGBarenge Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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