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________________ nomorromeone ono RAMERamesranam શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર, १ प्यारो पंमित लोकने, न पझे सो नव कूप ॥१७॥ स्वपर विनागे संपजे, खेले अनुन्नव योग ॥ ते धर्म वर्तना सद्दही, पामे शीववधु नोग ॥१ए ॥ सिध्ध वधु एम पामीए, सादि अनंतो काळ ॥ नीरविन सुख शाश्वतां, सो मुज काज अचाल ॥२०॥ आज मनोरथ सवी फळया, नाव अध्यातम पाप ॥ . ज्ञान शीतल करी सो रच्यो, ग्रंथ गुरु आज्ञाय ॥१॥ संपूर्ण. श्री गुरुभ्यो नमः अथ दायक नावतत्व विलास ग्रंथ खोख्यते ॥ दुहा. ॥ ॥ ढाळ ॥ द्वेष न धरीये लालन द्वेष न धरीए ए देशी ॥ दायक समकित नाव वखाणु ॥ एहथी पामी मुक्तिनुं टाणुं जविका ॥ मुक्तिनुं ॥ सात प्रकृति क्षय हां १ थावे ॥ते फरी कदीय न सन्मुख आवे नविका ॥सन्मुख०॥ ॥१॥ प्राप्ति चोथे वा सातमे गणे॥ वेदक दायक वचन प्रमाणे नविका ॥ वचन० ॥ दायक समकित नेदे नाख्युं । सदगुरु वचन में घटमां राख्युं नविका॥ घटमां० 9॥२॥ आवता नानुं पहेयुं आयुष्य बांध्यु ॥ सहे समकित पडे श्रेणि न साध्यु नविका ॥ श्रेणीन० ॥ खंगश्रेणी दायक नेद ए पहेलो ॥ उत्कृष्ट चार नवे सीव सहे व-है हेलो नविका ॥सीव०॥३॥ संसार स्थिति काळ शास्त्रे ना-७ Recenternet RIGramroGAR GARLGAPAGrenorrena Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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